हरिनाथ झा का एक प्रसिद्ध गीत है, हे गे बुधनी माय । उस गीत में एक पंक्ति है, ‘आय पकबिहे मरूआ रोटी मारा माछक साना ।‘ जितिया में तिरहुत की महिलाओं के लिए माछ (मछली) खाना उतना ही अनिवार्य है जितना बकरीद में मुस्लिमों के लिए गोश्त खाना । यही कारण है कि इन दोनों अवसरों पर खाने के साथ’साथ बांटने की परंपरा रही है। इसके पीछे केवल एक तर्क यह रहा है कि जो किसी कारण वश इसका सेवन न कर पा रहा हो, उसे भी यह उपलब्ध करा दिया जाये।
मिथिला में मड़ुआ रोटी और मछली खाने की परंपरा जिउतिया व्रत से एक दिन पहले सप्तमी को मिथिलांचल वासियों में भोजन में मड़ुआ रोटी के साथ मछली भी खाने की परंपरा है । जिनके घर यह व्रत नहीं भी होता है उनके यहां भी मड़ुआ रोटी व मछली खायी जाती । व्रत से एक दिन पहले आश्विन कृष्ण सप्तमी को व्रती महिलाएं भोजन में मड़ुआ की रोटी व नोनी की साग बनाकर खाएंगी। ज्योतिषाचार्य पीके युग के मुताबिक व्रती संतान की खातिर मड़ुआ रोटी व नोनी साग का सेवन करती हैं।
जिउतिया को लेकर पंडित-पंचांग एकमत नहीं, दो दिनों का होगा व्रत
जीमूतवाहन व्रत (जिउतिया) को लेकर पंडित और पंचांग एकमत नहीं हैं। इस वजह से इस बार जिउतिया व्रत दो दिनों का हो गया है। बनारस पंचांग से चलने वाले श्रद्धालु 22 सितंबर को जिउतिया व्रत रखेंगे और 23 सितंबर की सुबह पारण करेंगे। वहीं मिथिला और विश्वविद्यालय पंचांग दरभंगा से चलनेवाले श्रद्धालु 21 सितंबर को व्रत रखेंगे और 22 सितंबर की दोपहर तीन बजे पारण करेंगे। इस तरह बनारस पंचांग के मुताबिक जिउतिया व्रत 24 घंटे का है और विश्विविद्यालय पंचांग से चलन वाले व्रती 33 घंटे का व्रत रखेंगे। वंश वृद्धि व संतान की लंबी आयु के लिए महिलाएं जिउतिया का निर्जला व्रत रखती हैं। सनातन धर्मावलंबियों में इस व्रत का खास महत्व है।
सूर्योदय से सूर्योदय तक ही कोई व्रत होता है
ज्योतिषाचार्य मार्कण्डेय शारदेय के मुताबिक प्राय: जितिया का व्रत दो दिन हो ही जाता है। एक मत चन्द्रोदयव्यापिनी अष्टमी का पक्षधर है तो दूसरा सूर्योदयव्यापिनी अष्टमी का। सूर्योदय से सूर्योदय तक 24 घंटे का ही कोई व्रत होता है,अत: वैसा ही आचरण करना चाहिए। 21 सितम्बर शनिवार को अष्टमी अपराह्न 3.43 से प्रारम्भ है और 22 सितम्बर,रविवार को अपराह्न 2.49 तक है। मेरा मत सूर्योदयव्यापिनी अष्टमी के पक्ष में है। जब सूर्योदय से हम अष्टमी का ग्रहण करते हैं तो उसके पहले जैसे सरगही करते हैं,कर सकते हैं। अगले दिन 23 सितम्बर ,सोमवार को नवमी 1.30 बजे दिन तक है। ऐसे में पारण का भी कोई व्यवधान नहीं है। अष्टमी का व्रत नवमी में पारण,सूर्योदय से व्रत प्रारम्भ और अगले सूर्योदय के बाद पारण।
22 सितंबर को व्रत और 23 की सुबह पारण होगा
वैदिक ज्योतिष पं.धीरेंद्र कुमार तिवारी के मतानुसार जीवित्पुत्रिका व्रत अष्टमी तिथि में संपन्न की जाती और पारण नवमी तिथि में करना शास्त्र सम्मत माना जाता है। आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 22 सितंबर को अपराह्न 2:39 तक है । उदया तिथि अष्टमी रविवार 22 सितंबर को ही पड़ रही है । इसी मतानुसार जीवित्पुत्रिका व्रत एवं उपवास 22 सितंबर को रखना शास्त्र सम्मत है । रविवार को सायं 5.37 से 7.5 बजे के बीच मीन लग्न में विधि अनुसार अपने आराध्य एवं श्री नारायण भगवान विष्णु की आराधना फलप्रद है। क्योंकि इस सायंकाल में मीन लग्न में गुरु की त्रिकोण स्थिति के साथ सूर्य बुध चंद्रमा की केंद्रीय स्थिति उत्तम भक्ति भाव के लिए श्रेष्ठ योग है। नवमी युक्त उदया तिथि में 23 तारीख को सुबह पारण करना श्रेयस्कर होगा।
शिव मंदिर गोला रोड दानापुर के पं.संतोष कुमार वैदिक और पं.संतोष पांडेय के मुताबिक जिस दिन आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि में सूर्योदय हो उसी तिथि में जिउतिया व्रत शास्त्र सम्मत है। इस बार रविवार 22 सितंबर को सूर्योदय में अष्टमी तिथि पड़ रही है। इस व्रत के लिए अष्टमी तिथि में सूर्योदय का होना अनिवार्य है। डा.बनविहारी मिश्र शास्त्री ने भी 22 सितंबर को निर्जला जिउतिया व्रत की बात कही है।
गोबर-मिट्टी की प्रतिमा बनाकर पूजा कुश के जीमूतवाहन व मिट्टी -गोबर से सियारिन व चूल्होरिन की प्रतिमा बनाकर व्रती महिलाएं जिउतिया पूजा करेंगी। फल-फूल, नैवेद्य चढ़ाए जाएंगे। जिउतिया व्रत में सरगही या ओठगन की परंपरा भी है।