महाभारत के युद्ध के बाद अश्वत्थामा अपने पिता द्रोणाचार्य की मृत्यु से क्रोध में था। वह पांडवों से बदला लेना चाहता था। एक रात उसने पांडवों के शिविर में घुसकर सोते हुए लोगों को मार डाला। उसे लगा कि वो पांडव हैं। पर, वे द्रौपदी के 5 बेटे थे। क्रोधित होकर अर्जुन ने उसे पकड़ लिया और उसकी मणि छीन ली। इससे आहत अश्वत्थामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र चला दिया। सृष्टि के लिए उत्तरा की संतान का जन्म जरूरी था, इसलिए श्रीकृष्ण ने उत्तरा की गर्भ में मरी संतान को जीवित कर दिया। गर्भ में मरकर जीवित होने से उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा। आगे चलकर वे राजा परीक्षित बने। तब से संतान की सलामती व लंबी आयु के लिए व्रत रखने की परंपरा है।
मडुआ – जिउतिया पर्व में महिलाएं मड़ुआ की रोटी खाती हैं। इसका खास महत्व है। इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, आयरन और फाइबर मौजूद होते हैं। इसमें 80% कैल्शियम होता है। इससे हड्डी रोग में फायदा मिलता है। एनीमिया की कमी दूर होती है। इसमें मौजूद एमिनो एसिड से झुर्रियां नहीं पड़ती हैं।
नोनी साग – इस पर्व में नोनी साग का भी इस्तेमाल होता है। इसकी पत्तियों के रस में एनाल्जेसिक पाया जाता है, जो दर्दनिवारक का काम करता है। इसमें स्कोपोलेटिन भी मौजूद है जो ब्लड प्रेशर कंट्रोल करता है। नोनी साग में एंटीऑक्सीडेंट और एंटीबैक्टीरियल गुण भी होते हैं।सतपुतिया – सतपुतिया की सब्जी पचने में आसान होती है। पेट साफ करती है। भूख भी बढ़ाती है और हृदय के लिए अच्छी होती है। सतपुतिया कुष्ठ, पीलिया, रोग, सूजन, गैस, कृमि, पेट के रोग और बवासीर में भी उपयोगी होती है। दमा, सूखी खांसी, बुखार और जख्म ठीक करने में लाभकारी है।