नदी संस्कृति होती नदी जीवन का निर्माण करती है, और जो जीवन का निर्माण करें वो विध्वंसकारी नही हो सकती । कोशी के अंदर एक जुझारूपन है और इस जुझारूपन, इस जीवटता के कारण ही आज हम इस विभिषिका के बाद भी आराम से खड़े हो जाते हैं । उक्त बातें कोशी शिखर सम्मलेन के दूसरे संस्करण के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए बिहार सरकार के कला एवं संस्कृति मंत्रालय के उपसचिव तारानंद वियोगी ने कही ।
उन्होंने कहा जब पूरा भारत नवजागरण काल में था उस समय मिथिला के इस इलाके ने देश को नवजागरण दिया था । लक्ष्मी नाथ गोसाईं का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि लक्ष्मीनाथ गोसाईं के जो चार प्रमुख शिष्य थे उनमें एक कानकुब्जय ब्राह्मण थे, एक ईसाई और एक मुसलमान थे । यह उस जमाने के लिए बड़ी बात थी ।
इससे पूर्व कोशी शिखर सम्मेलन के दूसरे संस्करण का विधिवत उद्घाटन तारानंद वियोगी, साकार यादव, रजनीश रंजन, और संतोष झा ने दीप प्रज्वलित कर किया ।
उद्घाटन सत्र में बोलते हुए युवा उद्यमी और नेता साकार यादव में कहा कि कोशी में पलायन तभी रुकेगा जब यहाँ के लोग कृषि आधारित उद्योग लगाएंगे । उन्होंने मिथिला के मुहावरे का उदाहरण देते हुए कहा, ‘कम पढ़लक त हल छोड़लक, बेसी पढ़लक त घर छोड़लक।’ उन्होंने यहाँ के युवाओं को नौकर नही मालिक बनने का सूत्र दिया । उन्होंने कहा बिहार को भारत का किचन बनना होगा और भारत को विश्व का किचन बनना होगा तभी हम विश्व में सिरमौर बन पाएंगे । कोशी की धरती तीन फसली भूमि है, पूरे विश्व मे ऐसा कही नही है । असल मे नौकरी पैसे के लिए नही रिस्पांसिबिलिटी के लिए करना चाहिए । उन्होंने कहा युवाओं को सोच बदलने की जरूरत है क्योंकि, ‘जो सोचेंगे वो बोलेंगे, जो बोलेंगे वो करेंगे, जो करेंगे वो आदत बन जाएगी, जो आदत बनेगी वो चरित्र बनेगा और जैसा चरित्र बनेगा वैसा भविष्य बनेगा ।’
उन्होंने एक सीढ़ी का उदाहरण देते हुए कहा कि हमारे पूर्वजों ने जिस सीढ़ी का उपयोग कर यहाँ तक हमें पहुंचाया है उसी सीढ़ी का उपयोग करके हम और ऊपर जाना चाहते हैं जो संभव नही है, हमें जरूरत है अपनी नई सीढ़ी बनाने की ।
इसी सत्र को संबोधित करते हुए ईस्ट एंड वेस्ट टीचर ट्रेनिंग कॉलेज के डाइरेक्टर रजनीश रंजन ने कोशी के विकास मॉडल को सहरसा विश्वविद्यालय के भावी योजना से जोड़ते हुए कहा कि सहरसा का विकास तभी संभव है जब सहरसा का पैसा शिक्षा के नाम पर पटना, कोटा और दिल्ली चला जाता है सूद समेत वापस सहरसा आ जाए । अपने सहरसा विश्वविद्यालय की परिकल्पना में उन्होंने कहा कि हम अपने विश्वविद्यालय स्तर पर स्नातक का ऐसा कोर्स डिजायन करेंगे जिसमे यूपीएससी का पूरा सिलेबस होगा । और तीन साल तक यूपीएससी का सिलेबस पढ़ने के बाद ये विश्विद्यालय वो कमाल कर देगा जो आज तक किसी विश्वविद्यालय ने सोचा भी नही होगा । हम एक साथ 2000 IAS देंगे । और फिर एक दिन ऐसा आएगा जब दिल्ली का मुखर्जी नगर पुरबिया एक्सप्रेस और वैशाली पकड़कर वापस सहरसा आएगा । उन्होंने सरकार से अपील की, कि इस क्षेत्र में कम से कम एक IIT और IIM जरूर दें ताकि कोशी का जो पैसा बाहर जा रहा है वो वापस आ सके । साथ ही साथ उन्होंने छात्रों से भी अपील की, कि रोज महाविद्याल जाएं ताकि ज्ञान की जो गंगा वहाँ बहती है उससे आप लाभान्वित हो सके ।
अंत मे उन्होंने कहा कि मैं लोगों से अपील करता हूँ धूर्त मत लेकिन चालाक जरूर बनो । अपने कंधे का सहारा सिर्फ उन लोगो को दो जो कमजोर हो, उन्हें बिल्कुल अपने कंधे पर चढ़कर आगे मत बढ़ने दो जो तुम्हे दबाकर आगे बढ़ना चाहते हो । अपने कंधे अपने लिए बचा कर रखो ।
अंतिम वक्ता के रूप मे बिपार्ड के संपादक संतोष झा ने कहा कि कोशी माँ है और माँ के आंचल में त्रासदी नही होती विकास होता है।
आयोजन में सहरसा के युवाओं के साथ साथ पूरे कोशी के लोगों की सहभागिता थी, बिहार सहित देश के दूसरे छोड़ से भी लोग इस आयोजन में शिरकत करने आये थे । कार्यक्रम की अध्यक्षता सोमू आनंद ने की जबकि मंच संचालन राजा रवि कर रहे थे ।