पानी का काम है बहना, यह इसके स्वभाव में है । और हमने इनपर बराज बनाकर इनके अविरलता को रोक दिया है । कोशी और गंडक जो बिहार की प्रमुख नदियाँ हिमालय से निकलती है और जिसपर बराज बना हुआ है, उसका संचालन बिहार सरकार के नियंत्रण में है । फिर बिहार की नदियों में नेपाल पानी कैसे छोड़ सकता है ? यह हल्ला इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट बोर्ड का किया धरा है । कोशी शिखर सम्मेलन के तीसरे सत्र, ‘पर्यावरण संरक्षण : छोटी कोशिशों से बड़े बदलाव की उम्मीद’ में विष्णु नारायण के इस सवाल पर क्या नेपाल के पानी छोड़ने पर बिहार में बाढ़ आता है, पर मशहूर पर्यावरणविद एवं सामाजिक कार्यकर्ता रंजीत जी बोल रहे थे ।
तटबंध पर बात करते हुए रंजीत जी ने कहा, ये विकास असल में नदी विरोधी है । आज स्थिति ये है कि नदी मुख्य जमीन से 12 फ़ीट तक ऊँची बह रही है । हम नदियों को कैसे बाँध सकते हैं । पहले हमने विकास ने नाम पर विनाश मोल ले लिया है । आज़ादी से पहले तक हम सिर्फ केमिकल बाहर से मंगाते थे, बाँकी सारा का सारा सामान हम खुद उपजाते थे । आज स्थिति ये है कि हमलोग धान उगाते हैं और पंजाब से चावल खरीदते हैं ।
वही युवा एक्टिविष्ट ऋषव रंजन जिन्होंने सर्वप्रथम मुम्बई के आरे जंगल की कटाई का मसला उठाया था ने कहा, ‘जाबे करबै बाबु-बाबु, ताबे नै ओ रहता काबु । यानी प्रकृति किसी के इन्तजार में नहीं रहने वाली की अब हम पेड़ लगाएंगे, अब हम इसे ठीक कर लेंगे,तब तक के लिए प्रकृति रुकी रहेगी । ऐसा नहीं है । हम टाइम बॉम्ब पर बैठे हुए हैं और यह कभी भी फट सकता है, फलस्वरूप हमें मिलेगी, अतिवृष्टि, सुखाड़ और गर्मी । असल में हम जब तक प्रकृति के प्रति संवेदनशील नहीं होंगे तब प्रकृति के प्रति हमारी संवेदना, शैली और सरोकार नहीं जुड़ेगी, हम प्रकृति का क्षरण नहीं रोक पाएंगे ।
उन्होंने एक छोटा सा उदहारण देते हुए कहा कि एक जीन्स पैंट अपने जीवनकाल में 4000 लीटर पानी बर्बाद करता है, यानि इन छोटे छोटे बातों को ध्यान में रखकर भी हम पानी बचा सकते हैं ।
वही रंजीत जी ने बताया कि कैसे 1980 के बीच बिहार में पानीदारी के खिलाफ उन्होंने आंदोलन किया, कैसे जमींदारों को तो जमीन के मालिकाना हक़ से दूर कर दिया गया लेकिन पानी की जमींदारी उनकी बनी रही और कैसे उन्होंने पानी का दोहन किया ।
पानी के दोहन पर उन्होंने बताया कि नदियों को खोकर हमने भूगर्भ जल का भी दोहन शुरू कर दिया है । और इसी लगातार दोहन के वजह से आज हमें आर्सेनिक युक्त पानी मिलता है । एक समय ऐसा आएगा जब ये आर्सेनिक युक्त पानी खेतों में जाएगा तो फसल भी आर्सेनिक युक्त होगा । उन्होंने कहा कि पानी के बहाव को एडॉप्ट करके हम उसके बहाव पर नियंत्रण ला सकते हैं, किसानों ने ऐसा किया भी है । गंडक आज भी अपने स्थान पर ही बह रही है ।
असल में हमें कोई भी डेवलेपमेंट मेथड लाने से पहले उन्हें प्रकृति के अनुसार टेस्ट करना पड़ेगा ।
वही पर्यवारणविद ऋषव ने कहा कि पर्यावरण के मुद्दे को राजनीती का मुद्दा बनाना होगा तभी लोग इसके प्रति जागरूक हो पाएंगे । राजनेताओं को मिलकर इसपर काम करना होगा । प्रकृति टेक्निकली में नहीं जाएगा, ये कभी भी अपना प्रयंकाली रूप अपना सकती है ।
वही रंजीत जी ने कहा हमें जरूरत है रिवर ट्रेनिंग की । आज बिहार सरकार के इंजीनियर सिविल इंजीनियर है न की हाइड्रो इंजीनयर । सिलेबस में डैम पढ़ाया जाता है नदी नहीं ।
अंत में विष्णु नारायण ने कहा कि नदियों का ये मसला चिरकाल तक ऐसे ही बना रहने वाला है । नेता लोग कहते हैं, कि तटबंध एकेडमिक विषय है, सदन में इनकी चर्चा नहीं होनी होती है। नेता चाहते हैं कि बाढ़ सुखाड़ का यह मसला यूँ ही चलता रहे ताकि पैसे की बंदरबाट यूँ ही चिरकाल तक चलता रहे ।