विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला के लगने न लगने पर महीनों से बरकरार संशय का पटाक्षेप करते हुए नवगठित नीतीश सरकार के भूमि सुधार एवं राजस्व मंत्री रामसूरत राय ने कहा है कि इस वर्ष कोरोना को लेकर श्रावणी मेला तथा गया का पितृपक्ष मेला नहीं लगा। वैसे ही एशिया का प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला भी इस बार कोविड-19 के खतरों से बचाव के मद्देनजर नहीं लगेगा । इसकी भरपाई अगले वर्ष काफी धूमधाम के साथ इस मेले का आयोजन कर की जाएगी । हरिहर क्षेत्र मेला नहीं लगने के लिए उन्होंने किसान भाइयों तथा पशुपालकों से क्षमा मांगते हुए कहा कि हमें अफसोस है कि इस बार आप सभी इस मेले में अपने पशुओं को नहीं ला सकेंगे । मंत्री बुधवार को अपने घर बोचहां जाने के दौरान सोनपुर के उप प्रमुख श्याम बाबू राय के विशेष आग्रह पर यहां एक होटल पर थोड़ी देर रुके थे । इसी क्रम में उन्होंने दैनिक जागरण से उक्त बातें कही।
सदियों पुराना इतिहास है सोनपुर मेले का
विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला। गौरवशाली सांस्कृतिक परंपरा के साथ-साथ कई धार्मिक व पौराणिक मान्यताएं भी है। लोगों की आस्था के केंद्र में बाबा हरिहरनाथ का मंदिर है। यहां भगवान विष्णु और भगवान शिव का मंदिर होने के कारण इस क्षेत्र का नाम हरिहर पड़ा। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यहीं कोनहारा घाट के गंडक नदी में एक गज (हाथी) को एक ग्राह (मगरमच्छ) ने पकड़ लिया था। दोनों में काफी देर तक युद्ध होता रहा। गज को ग्राह ने बुरी तरह जकड़ लिया था। तब गज ने भगवान विष्णु का स्मरण किया था। भगवान ने प्रकट होकर स्वयं गज की रक्षा की थी। हरिहर क्षेत्र कई संप्रदायों के मतावलंबियों के आस्था का केंद्र भी है। सबसे बड़े पशु मेला होने का गौरवशाली इतिहास है। मेले के गौरवशाली इतिहास, पौराणिकता, समृद्ध लोक संस्कृति की झलक व धार्मिक पहलुओं के विषय में जितना लिखा जाए कम होगा। आस्था, लोकसंस्कृति व आधुनिकता के रंग में सराबोर सोनपुर मेले में बदलते बिहार की झलक भी देखने को मिलती रही है।
राजा-महाराजा हाथी-घोड़े खरीदने आते थे
आस्था, लोकसंस्कृति व आधुनिकता के विभिन्न रंगों को अपने दामन में समेटे सोनपुर मेले का आरंभ कब हुआ, यह कहना मुश्किल है। कभी यहां मौर्यकाल से लेकर अंग्रेज के शासन काल तक राजा-महाराजा हाथी-घोड़े खरीदने आया करते थे। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु मोक्ष की कामना के साथ पवित्र गंगा और गंडक नदी में डुबकी लगाने आते हैं।
लोक संस्कृति पर चढ़ा आधुनिकता का रंग
हाल के दो-ढाई दशकों में मेले की लोक संस्कृति पर धीरे-धीरे आधुनिकता का रंग चढ़ता गया है। इधर हाल के वर्षों में धीरे-धीरे आधुनिकता व पाश्चत्य संस्कृति मेले पर हावी होने लगी है। पारंपरिक दुकानों की जगह नामी गिरामी कंपनियों के प्रदर्शनी स्टॉल लगने लगे। थियेटरों ने भी मेले में अपनी खास पहचान बना ली। धीरे-धीरे इनकी संख्या भी बढ़ने लगी। कई सरकारी और गैर सरकारी कंपनियां यहां अपना स्टॉल लगाती हैं। इन सबके बावजूद हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला अपने दामन में कई संस्कृतियों को संजाेये हुए दिखता रहा है। धीरे-धीरे हाईटेक होते सोनपुर मेले में आधुनिक दौर की झलक देखने को मिलती है, वहीं मेले के कुछ हिस्से में लोक संस्कृति और परंपरा भी कायम रहती है।
मेला में रोजर्मरा की जरूरत से लेकर सौंदर्य प्रसाधन की दुकानें चिड़िया बाजार, साधु गाछी, ड्रोलिया से हरिहरनाथ मंदिर जाने वाले रास्ते में दुकानें भी सजती रही हैं। पारंपरिक हथियार समेत और भी बहुत कुछ की दुकानें लगती रही हैं।