अगले दशक यानी 2030 से देश और दुनिया की सड़कों पर पेट्रोल-डीजल की जगह ‘पानी’ से बस-ट्रकों को दौड़ते देख हम सब हैरान हो सकते हैं, लेकिन तेजी से बदलती इस दुनिया में कुछ भी संभव है। आपको इस बात पर पक्के तौर पर भरोसा करना पड़ेगा। भरोसा नहीं है तो आप ज्यादा नहीं बल्कि बीते दो दशक के अपने सफर को याद कीजिए। इन दो दशकों में ही कई चीजें अचानक से हमारे आंखों के सामने से विलुप्त हो गई हैं, जिसकी कल्पना खुद हम नहीं करते थे। लैंडलाइन फोन, रोल वाले मैनुअल कैमरा, टेप रिकॉर्डर जैसी कई चीजें हैं जो अचानक से खत्म हो गईं। कुछ इसी तरह ऑटोमोबाइल की दुनिया में ऐसी गाड़ियां आ गई हैं जिसकी दो-तीन दशक पहले तक कल्पना भी नहीं की जा रही थी।
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दरअसल, हम बात कर रहे हैं पेट्रोल-डीजल के विकल्प हाइड्रोजन ईंधन की। हमने हाइड्रोजन की जगह पानी शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया है क्यों कि इस गैस का सबसे बड़ा स्रोत पानी ही है। हम सभी विज्ञान की स्कूली किताबों में ही पढ़ चुके हैं कि पानी दो हिस्से हाइड्रोजन और एक हिस्सा ऑक्सीजन के मिश्रण से बना है।
दुनिया में हाइड्रोजन से चलने वाली गाड़ियों का न केवल सफल परीक्षण हो चुका है बल्कि कई कंपनियां इस ईंधन से चलने वाली गाड़ियां बनाने भी लगी हैं। उम्मीद की जा रही है कि अगले दशक तक पेट्रोल-डीजल के एक कारगर विकल्प के रूप में हाइड्रोजन का विकास हो जाएगा।
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क्या है हाइड्रोजन और कैसे पैदा करेगी बिजली
अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी अविलाश गौड़ की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 1783 में फ्रांसीसी रसायनशास्त्री एंटोइन लॉरेंट डी लावोइसियर ने पानी पैदा करने वाले तत्व का नाम हाइड्रोजन रखा। इसके बाद सन 1800 में विलियम निकोल्सन और एंथोनी कार्लिस्ले ने पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में अलग-अलग किया।
इसके बाद वर्ष 1839 में विलियम रोबर्ट ग्रोव नामक वैज्ञानिक ने हाइड्रोजन और ऑक्सीजन को मिलाकर इलेक्ट्रिसिटी पैदा करने वाले एक फ्यूल सेल का निर्माण किया। इतना ही नहीं हमारे ब्रह्माण्ड में जितने तारे हैं वे सभी हाइड्रोजन और हिलियम में बदलकर ऊर्जा पैदा करते हैं।