बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय बीपी मंडल की आज जयंती है। जयंती के मौके पर बीपी मंडल को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने श्रद्धांजलि अर्पित की है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक अणे मार्ग स्थित लोक संवाद में स्वर्गीय बीपी मंडल की तस्वीर पर माल्यार्पण किया और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस मौके पर बिहार के शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी, भवन निर्माण मंत्री अशोक चौधरी, जल संसाधन मंत्री संजय कुमार झा भी मौजूद थे। इन सभी ने स्वर्गीय बीपी मंडल को श्रद्धांजलि अर्पित की। इस मौके पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीपी मंडल के योगदान को याद करते हुए कहा कि समाज के कमजोर वर्ग के लोगों के लिए मंडल जी ने जो प्रयास किया वह हमेशा उसके लिए याद किए जाएंगे।
साल 1990 में केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग, जिसे आमतौर पर मंडल आयोग के रूप में जाना जाता है, की एक सिफ़ारिश को लागू किया था।
ये सिफारिश अन्य पिछड़ा वर्ग के उम्मीदवारों को सरकारी नौकरियों में सभी स्तर पर 27 प्रतिशत आरक्षण देने की थी। इस फ़ैसले ने भारत, खासकर उत्तर भारत की राजनीति को बदल कर रख दिया। इस आयोग के अध्यक्ष थे बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल यानी बीपी मंडल।
साल 2018 बीपी मंडल का जन्मशती वर्ष है। बीपी मंडल का जन्म 25 अगस्त, 1918 को बनारस में हुआ था।
बीपी मंडल विधायक, सांसद, मंत्री और बिहार के मुख्यमंत्री भी रहे। लेकिन दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष के रूप की गई सिफ़ारिशों के कारण ही उन्हें इतिहास में नायक, खासकर पिछड़ा वर्ग के एक बड़े आइकन के रूप में याद किया जाता है।
दूसरा पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनावों में बनी जनता पार्टी की मोरारजी भाई देसाई की सरकार ने किया था।
दरअसल, जनता पार्टी ने अपने घोषणापत्र में ऐसे आयोग के गठन की घोषणा की थी।
हरियाणा के पूर्व राज्यपाल धनिक लाल मंडल मोरारजी सरकार में गृह राज्य मंत्री थे। उन्होंने ही तब राज्य सभा में इस आयोग के गठन की घोषणा की थी। अभी चंडीगढ़ में रह रहे करीब 84 साल के धनिक लाल मंडल से मैंने फ़ोन पर पूछा कि आप की सरकार ने तब इस आयोग के अध्यक्ष बतौर बीपी मंडल का ही चुनाव क्यों किया?
इसके जवाब में वो कहते हैं, ”तय ये हुआ था कि आयोग का जो अध्यक्ष हो उसकी बड़ी हैसियत होनी चाहिए। वो (बीपी मंडल) बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके थे। साथ ही वे पिछड़ा वर्ग के हितों के बड़े हिमायती थे। वे इसके बड़े पैरोकार थे कि पिछड़ा वर्ग को आरक्षण मिलना चाहिए।”
बचपन से की आवाज़ बुलंद
बीपी मंडल का जब जन्म हुआ था, तब उनके पिता रास बिहारी लाल मंडल बीमार थे और बनारस में आखिरी सांसें गिन रहे थे। जन्म के अगले ही दिन बीपी मंडल के सिर से पिता का साया उठ गया। मृत्यु के समय रास बिहारी लाल मंडल की उम्र सिर्फ़ 54 साल थी।
बीपी मंडल का ताल्लुक बिहार के मधेपुरा ज़िले के मुरहो गांव के एक जमींदार परिवार से था। मधेपुरा से पंद्रह किलोमीटर की दूरी पर बसा है मुरहो। इसी गांव के किराई मुसहर साल 1952 में मुसहर जाति से चुने जाने वाले पहले सांसद थे।
मुसहर अभी भी बिहार की सबसे वंचित जातियों में से एक है। किराई मुसहर से जुड़ी मुरहो की पहचान अब लगभग भुला दी गई है। अब ये गांव बीपी मंडल के गांव के रूप में ही जाना जाता है।
राष्ट्रीय राजमार्ग-107 से नीचे उतरकर मुरहो की ओर बढ़ते ही बीपी मंडल के नाम का बड़ा सा कंक्रीट का तोरण द्वार है। गांव में उनकी समाधि भी है।
बीपी मंडल की शुरुआती पढ़ाई मुरहो और मधेपुरा में हुई। हाई स्कूल की पढ़ाई दरभंगा स्थित राज हाई स्कूल से की। स्कूल से ही उन्होंने पिछड़ों के हक़ में आवाज़ उठाना शुरू कर दिया था।