आए दिन आप और हम महाराष्ट्र में आयोजित होने वाली गणेश महोत्सव के बारे में सुनते हैं और टीवी पर विभिन्न कार्यक्रम देखते हैं। दावा किया जाता है कि कि गणेश उत्सव का शुभारंभ महाराष्ट्र से हुआ है। जबकि सच कुछ और ही है। इतिहासकारों की माने तो देश में सबसे पहले बिहार के मिथिला क्षेत्र में गणेश उत्सव का शुभारंभ हुआ था।
जानकारी अनुसार महराजा रूद्र सिंह के पोते और महाराजा लक्ष्मेश्वर सिंह के भाई और आप्त सचिव बाबू जनेश्वर सिंह ने 1886 के आसपास ही वर्तमान मधेपुरा जिले के शंकरपुर में सार्वजनिक रूप से गणेश पूजा की शुरुआत की थी। जबकि महराष्ट्र में इसके करीब सात साल बाद 1893 में गणेश उत्सव सार्वजनिक रूप से आयोजित किया जाने लगा। ऐसे में गणेश उत्सव की सार्वजनिक रूप से मनाने का श्रेय शंकरपुर के लोगों को जाता है।
इलाहाबाद विश्व विद्यालय के पूर्व वीसी डॉ सर गंगानाथ झा की ऑटो बायोग्राफी में साफ तौर से इस बात का उल्लेख है कि 1893 में दरभंगा आने से पूर्व बाबू जनेश्वर सिंह शंकरपुर में सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत कर दी थी। श्री झा शंकरपुर में गणेश पूजा करने के वायदे को पूरा करने के कारण ही मिथिला नरेश की नाराजगी के शिकार बने और उनकी राज पुस्तकालयाध्यक्ष पद गंवानी पड़ी।
इसके कारण वो इलाहाबाद जाने को बाध्य हुए श्री झा के आत्मकथा में ही इस बात का उल्लेख मिलता है कि 19वीं शताब्दी के आखरी दशक में केवर शंकरपुर ही नहीं दरभंगा, राजनगर जैसे अन्य महत्वपूर्ण स्थानों पर भी यह पूजा धूम धाम से मनाया जाता था। ऐसे में आज की तारीख में बेशक महराष्ट्र गणेश पूजा को लेकर प्रसिद्ध है लेकिन मधेपुरा के शंकरपुर में जो बीजारोपण 1886 में हुआ। उसी वटवृक्ष की एक शाखा महराष्ट्र में पल्लवित, पुष्पित रूप में हमारे समक्ष आज उपस्थित है।
बताते चले कि बाबू जनेश्वर सिंह ने अपने जीवन काल में शिक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण संस्थानों का निर्माण कराया। इनमें शंकरपुर पुस्कालय मधेपुरा, शंकरपुर संस्कृत पाठशाला, महरानी लक्ष्मीवती एकादमी दरभंगा, महराजा लक्ष्मेश्वर सिंह सार्वजनिक पुस्तकालय लालबाग दरभंगा तथा शंकरपुर धर्मशाला हराही दरभंगा उल्लेखनीय है।