मधुश्रावणी । मिथिलांचल में नवविवाहिताओं का प्रसिद्ध लोक आस्था का पर्व । इसका शुभारंभ सावन महीने के कृष्ण पक्ष पंचमी से आरंभ होता है और शुक्ल पक्ष के तृतीया तिथि को टेमी दागने (घुटने पर दीपक से दागा जाता है ) के विधि के बाद समापन हो जाता है। इस पर्व में नवविवाहिताओं को घुटने पर दीपक से दागा जाता है। इसकी मान्यता यह है कि जितना बड़ा फफोला होगा, पति की आयु उतनी ही बढ़ेगी। यह पर्व 13 दिनों तक चलता है। खास बात यह है कि अन्य व्रत की तरह इसमें पुरोहित महिला होती हैं और वहीं सारा पुजा संपन्न करवाती है ।
फफोला जितना बड़ा होता है पति की आयु उतनी ही लंबी होती है
मिथिलानी अंजना शर्मा कहती हैं कि मधुश्रावणी पूजा के अंतिम दिन नवविवाहिताओं का विवाह के बाद एक बार फिर पति द्वारा सिंदूर-दान किया जाता है। इसके बाद टेमी दागने की विधि होती है।
अध्यापिका सीमा कुमारी कहती हैं कि टेमी दगाय के बाद नवविवाहिताओं के घुटने पर फफोला आ जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह फफोला जितना बड़ा होता है पति की आयु उतनी ही लंबी होती है। यह विधि स्त्री के वीरत्व को दर्शता है।
तपस्या के समान है मधुश्रावणी की पूजा, 14 दिनों तक महिलाएं नमक नहीं खाती हैं, महिला ही होती है पंडित
मधुश्रावणी जीवन में सिर्फ एक बार शादी के पहले सावन को किया जाता है। नव विवाहिताएं बिना नमक के 14 दिन भोजन ग्रहण करेंगी। यह पूजा लगातार 14 दिनों तक चलते हुए श्रावण मास के शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को विशेष पूजा-अर्चना के साथ व्रत की समाप्ति होती है। इन दिनों नवविवाहिता व्रत रखकर गणेश, चनाई, मिट्टी एवं गोबर से बने विषहारा एवं गौरी-शंकर का विशेष पूजा कर महिला पुरोहिताईन से कथा सुनती है। कथा का प्रारम्भ विषहरा के जन्म एवं राजा श्रीकर से होता है।