आर्थिक सर्वेक्षण। इसमें बीते साल का लेखा-जोखा और आने वाले साल के लिए सुझाव, चुनौतियां और समाधान होते हैं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 31 जनवरी, 2020 को इकॉनमिक सर्वे पेश कर दिया। बजट 2020 से एक दिन पहले।
मोदी सरकार के आर्थिक सर्वे में माना गया है कि अर्थव्यवस्था संकट में है और इसे रफ्तार देने के लिए सरकार कों नीतियां बदलने की जरूरत है। साथ ही सलाह दी गई है कि अगर भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनना है तो ऐसी प्रो क्रोनी नीतियों को छोड़ना होगा जिनसे कुछ खास निजी उद्योग घरानों को फायदा होता है, खासतौर से उन्हें जो ज्यादा ताकतवर हैं।
मोदी सरकार ने शुक्रवार को संसद में आर्थिक सर्वे पेश किया। इस सर्वे में सरकार ने अगले वित्त वर्ष यानी 2020-21 के लिए 6 से 6।5 फीसदी विकास का अनुमान लगाया है, लेकिन इसके लिए सरकार को दो बिंदुओं पर फोकस करने की सलाह दी गई है। आर्थिक सर्वे सरकार का वह दस्तावेज होता है जो बीते वर्ष में देश की आर्थिक स्थिति के बारे में बताता है और आने वाले वित्त वर्ष के लिए सरकार को सलाह देता है, जिससे अर्थव्यवस्था के लक्ष्य हासिल किए जा सकें।
सर्वे में कहा गया है कि भारत के पास चीन जैसी श्रम आधारित और निर्यात वाली अर्थव्यवस्था खड़ी करने का मौका है। साथ ही कहा गया है कि सरकार के विस्तार वाली नीतियां अपनानी होंगी ताकि विकास को गति मिल सके। इसके अलावा सरकार को खर्च पर नियंत्रण की भी सलाह दी गई है।
सर्वे में आर्थिक हालात को सुधारने और अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के साथ ही 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लिए दो खास बिंदुओं पर फोकस करने को कहा गया है –
- सरकार प्रो बिजनेस यानी कारोबारों को फायदा पहुंचाने वाली नीतियां बनाए जिससे प्रतिस्पर्धी बाजार की असली क्षमता सामने आए और वह पैसा बना सके
- सरकार को प्रो क्रोनी नीति को छोड़ना होगा
क्या है प्रो-क्रोनी नीति
प्रो क्रोनी नीति वो नीति है जिसमें अपने मित्रों को फायदा पहुंचाया जाता है या जिस नीति से कुछ खास निजी घरानों, खासतौर से ताकतवर घरानों को फायदा होता है । इसमें सरकार अपने मित्र देश या मित्रों की कंपनियों पर कुछ ज्यादा मेहरबान होती है और उन्हे जानबुझ कर फायदा पहुँचाने का काम करती है ।
इनके अलावा आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि सरकार उसे मिले जनादेश का फायदा उठाते हुए आर्थिक सुधारों के लिए काम करे ताकि 2020-21 में अर्थव्यवस्था में सुधार हो सके। साथ ही सरकार को सलाह दी गई है कि वह सरकारी बैंकों में पारदर्शिता लाए ताकि इन बैंकों पर लोगों का विश्वास कायम हो सके।
आर्थिक सर्वे में नए बिजनेस शुरु करने, संपत्ति के पंजीकरण, कर भुगतान आदि को आसान करने की नीति बनाने को कहा गया है। साथ ही चेताया गया है कि जरूरी वस्तुओं की कीमतें काबू करने में सरकार की कोशिशें प्रभावी नहीं रही हैं। इसके लिए प्याज की कीतमों का हवाला दिया गया है।
इकॉनमिक सर्वे क्यों ज़रूरी है?
क्योंकि इससे पता चलता है कि अर्थव्यवस्था सही चल रही है या नहीं। कई बार कुछ ज़रूरी मुद्दों की तरफ भी ध्यान दिलाया जाता है। जैसे- 2018 का इकॉनमिक सर्वे गुलाबी रंग के कवर में छापा गया था। जेंडर इक्वॉलिटी पर ज़ोर देने के लिए। यूनिवर्सल बेसिक इनकम की बात भी इसमें कही गई थी। तब वित्त मंत्री अरुण जेटली और CEC अरविंद सुब्रमण्यन थे।
क्या सरकार के लिए इसे पेश करना ज़रूरी है?
संवैधानिक तौर पर सरकार इसे पेश करने के लिए या इसमें की गई सिफारिशों को मानने के लिए बाध्य नहीं है। अगर सरकार चाहे तो इसमें दिए गए सारे सुझावों को ख़ारिज कर सकती है। फिर भी इसकी एक हैसियत बन चुकी है और ये सर्वे अर्थव्यवस्था के सालभर का लेखा-जोखा लोगों को दे देता है तो सरकारें इसे पेश कर देती हैं।