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क्या हो अगर आपके सामने मौत खड़ी और आपको बिलकुल भी डर न लगे । लोग भले ही आपको वीर-बहादुर कहे । दुनियाँ आपको इसके लिये सलाम करें । और आप गर्व से सीना चौड़ा करते हुए यह कहते हुए चले कि, ‘डर नहीं लगता है साहेब’ । लेकिन अगर ऐसा है तो सचमूच परेशान होने वाली बात है । यह आपकी ताकत नहीं बल्कि एक तरही की कमजोरी है । जिससे सही समय पर अगर निपट लिया जाय तो आप एक खतरनाक बिमारी से बच सकते हैं ।
शोध से पता चला है कि, किसी भी चीज़ का ख़ौफ़ न होना एक तरह की आनुवांशिक बीमारी है। इस समस्या से पीड़ित लोगों के दिमाग़ का वो हिस्सा काम ही नहीं करता, जिससे डर का पता चलता है। ऐसे लोगों को अपने सामने मौजूद ख़तरे का आभास नहीं होता, जिसके चलते कभी-कभी वो ख़ुद की सुरक्षा भी नहीं कर पाते।
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इस बीमारी में मस्तिष्क तक नहीं पहुंच पाता डर का संदेश
सबसे पहले यह जानते हैं कि डर क्यों होता है । इसका एहसास कैसे होता है । असल में जब हमारे सामने कोई अनचाही परिस्थिति आ जाती है, तब हमारे शरीर की तंत्रिकाएं मस्तिष्क के एक हिस्स Amygdala तक संदेश पहुंचाती हैं। ये हमारे मस्तिष्क में ‘भागने या लड़ाई’ करने की प्रतिक्रिया को उत्तेजित करता है। मगर जो लोग Urbach-Wiethe disease से ग्रसित होते हैं, उनके साथ ऐसा नहीं होता ।
इस आनुवांशिक बीमारी में शरीर के कई हिस्से काफ़ी सख़्त हो जाते हैं, जिसका असर दिमाग़ पर भी पड़ता है। मस्तिष्क में एमिग्डेला नाम का हिस्सा इतना कड़ा हो जाता है कि इस तक तंत्रिकाओं के ज़रिए डर का संदेश नहीं पहुंच पाता है। दिलचस्प ये है कि इस बीमारी का असर बच्चे के विकास पर नहीं पड़ता। मतलब है कि उसे इस बीमारी के चलते कोई और समस्या नहीं होती, बस उसे डर का एहसास नहीं होता है।
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इस बीमारी से पीड़ित एक महिला पर हुए थे चौंकाने वाले प्रयोग
अमेरिका में एक महिला इसी बीमारी से पीड़ित थी। जिसकी पहचान ज़ाहिर नहीं की गई और उसे SM नाम दिया गया। डॉक्टरों ने उस पर कई तरह के प्रयोग किए। उसका चुपके से अपहरण किया, लेकिन वो न तो चीखी और न ही उसने किसी से मदद की गुहार लगाई। बंदूक से उसे डराने की कोशिश भी बेकार गई। यहां तक, जब उसके कमरे में ज़हरीले सांप छोड़ दिए गए, तो भी वो घबराने के बजाय सांपो को छूने के लिए आगे बढ़ गई। जिसके बाद तुरंत सांपों को वहां से हटाना पड़ा।
बता दें, इस महिला पर क़रीब 10 साल प्रयोग हुए, जिसके बाद ये साबित हो गया कि दिमाग़ का एक हिस्सा प्रभावित होने की वजह से उस महिला को किसी भी प्रकार का डर नहीं लगता। हालांकि, इसका एक अपवाद भी रहा। दरअसल, जब SM को अपनी ही तरह की बीमारी से पीड़ित दो अन्य लोगों के साथ एक कमरे में कार्बन डाइऑक्साइड में सांस लेने के लिए छोड़ा गया, तब पहली बार SM को डर का एहसास हुआ। ऑक्सीज़न के अभाव में उनमें पैनिक देखा गया।
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शोधकर्ताओं ने पाया कि अब तक जो डराने वाले प्रयोग किए गए थे, उसमें सांप हो या बंदूक बाहरी चीज़ों का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें डर का संदेश एमिग्डेला तक नहीं पहुंच पाया। मगर जब सांस लेने में परेशानी हुई तो ये शरीर के अंदर से आई प्रतिक्रिया थी। इसका सीधा मतलब था कि जब हमारे शरीर में ऑक्सीज़न की कमी होती है, तब हमारा शरीर इसका पता लगाने के लिए एमिग्डेला के भरोसे नहीं बैठता। इस बजाय शरीर के अन्य हिस्से सक्रिय होते हैं।
क्या होते हैं इस बीमारी के लक्षण?
इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति में तीन मुख्य लक्षण देखे गए हैं। जिसमें आवाज़ में भारीपन आना, आंखों के आसापास उभरे हुए दाने और दिमाग़ में कैल्शियम इकट्टठा होना। मुख्य रूप से ये कैल्शियम ही है, जो डर को ख़त्म कर देता है। हालांकि, इसका पता सीटी स्कैन के ज़रिए ही लगाया जा सकता है। साथ ही, ये एक इंसान के विकास पर तो कोई असर नहीं डालता, लेकिन आगे चलकर इसके मरीज़ को मिरगी आ सकती है। बता दें, पूरी दुनिया में इस बीमारी से पीड़ित लोगों के संख्या 500 से भी कम है।
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बॉलीवूड में एक फिल्म आई थी, ‘मर्द को दर्द नहीं होता।‘ उस फिल्म में जो हीरो होता है उनाको ऐसी ही बीमारी होती है । उन्हें किसी भी चोट या सर्दी,गर्मी का एहसास नहीं होता । अगर आपके आस-पास भी कोई ऐसा मर्द है जिसे सचमूच का दर्द नहीं होता तो हमें लिखें । हम उनकी कहानी का प्रमुखता से जगह देंगे।