
इवीएम और इपिक के दौर में भी बिहार में बोगस वोटिंग की शिकायतें आती हैं। विधानसभा चुनाव में फर्जी मतदान रोकने के लिए एक नया मॉडल लागू किया जा रहा। अररिया ने राह दिखाई है। लोकसभा चुनाव में अररिया जिले की तत्कालीन एसपी धुरत सयाली सावला राम ने यह मॉडल लागू किया था। इससे सांप्रदायिक रूप से बेहद संवेदशनशील अररिया में न सिर्फ दूसरे के नाम पर मतदान घट गया, बल्कि ऐसी कोशिश करने वाले तीन दर्जन लोग अभी तक मुकदमा झेल रहे हैं। यह मॉडल कैसे बिहार में लागू होगा, इसकी तैयारी शुरू हो गई है। मुख्य निर्वाचन अधिकारी कार्यालय ने अपर पुलिस महानिदेशक जितेंद्र कुमार को पत्र लिखकर विस्तृत दिशा-निर्देश दिया है। उन्होंने कहा है कि राष्ट्रीय मतदाता दिवस पर पुरस्कृत अररिया मॉडल को पूरे बिहार में लागू करें। सवा लाख पुलिस वालों को अररिया मॉडल की ट्रेनिंग दिलाएं।
महाराष्ट्र की रहने वाली 2010 बैच की बिहार कैडर की एसपी को इस कार्य के लिए मतदाता दिवस पर इसी वर्ष राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। अररिया बेहद संवेदनशील जिला है। राजनीति पर भी सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की छाप दिखती है। मतदाता पहचान पत्र (इपिक) और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (इवीएम) के दौर में भी यह शिकायत रहती थी कि किसी के नाम पर कोई और वोट दे आया। इसे रोकने के लिए पिछले लोकसभा चुनाव में यह मॉडल लागू किया गया। जिले में हर 10 बूथ का एक समूह बना। उन दसों बूथों की निगरानी के लिए एक पुलिस अफसर के नेतृत्व में टीम बनाई गई। इस टीम को मतदान वाले दिन सिर्फ उन्हीं दस बूथों पर लगातार जांच करनी थी, जहां उनकी ड्यूटी लगी है।
सयाली ने स्वच्छ मतदान के लिए अपना एक अलग एसओपी (मानक संचालन प्रक्रिया) बनाई। तीन चरणों में पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षण भी दिया। 755 पुलिस कर्मियों को प्रशिक्षित किया। इसमें 133 अवर पुलिस निरीक्षक (एएसआइ), 111 सहायक पुलिस निरीक्षक (एसआइ) और 13 इंस्पेक्टर शामिल थे। प्रत्येक टीम को जिम्मेदारी दी गई थी, पूरे दिन लगातार अपने बूथ पर राउंड लगाते रहें। मतदान के लिए कतार में लगे हर व्यक्ति की जांच करें। खास तौर पर नाखून की जांच होती थी, ताकि मतदान वाली स्याही पर नेल पॉलिश लगाने वालों की पहचान हो। घुंघट और नकाब वाली महिलाओं की जांच के लिए भी विशेष इंतजाम थे। वहां उनके पहचान पत्र में छपी फोटो और चेहरे का मिलान किया जाता था। कुछ वोटर ऐसे होते हैं, जिनका नाम एक जैसा होता है। हमनाम पहचान पत्र का भी बोगस वोटिंग के लिए इस्तेमाल होता था। पुलिस टीम ने पहचान पत्र की बारीकी से जांच की। नाम और पिता का नाम मिलाया। शक होने पर अन्य पहचान पत्र मंगाए। बारीक जांच की इस व्यवस्था की वजह से बोगस वोटिंग कम हुई। दो दर्जन से अधिक लोगों के खिलाफ मुकदमे हुए। अब इस मॉडल की पूरे बिहार में परीक्षा होनी है।