महिषी प्रखंड क्षेत्र में वैसे तो कई ऐतिहासिक आध्यात्मिक स्थल मौजूद हैं। लेकिन प्रखंड क्षेत्र में स्थित महाभारतकालीन नाकुच के नाकुचेश्वर मंदिर का शिवलिग अपनी बनावट के लिए अत्यधिक प्रसिद्ध है। इस मंदिर के बारे में पुरातत्ववेताओं का मानना है कि नाकुचेश्वर मंदिर के शिवलिग और इसके आसपास की गई खुदाई से प्राप्त भग्नावशेष गुप्तकाल के प्रतीत होते हैं।
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नाकुचेश्वर मंदिर को लेकर कई प्रकार की है किवदंती
स्थानीय ग्रामीणों और पुजारियों की मानें तो इस मंदिर में कुंती पुत्र नकुल ने पूजा-अर्चना की थी। जिसके कारण इस मंदिर का नाम नाकुचेश्वर शिव मंदिर पड़ा। ऐसा माना जाता है कि यह इलाका घने जंगलों से घिरा होने के कारण यहां चरवाहे गाय चराया करते थे। जंगलों में चर रही गायें इस स्थल पर स्वत: उत्पन्न शिवलिग पर अपने थन से दुग्धाभिषेक करती थी। बताते हैं कि एक दिन चरवाहा ने गाय के थन से अपने आप दूध की धारा बहते देखा तो उसकी जिज्ञासा बढ़ गई। नजदीक जाकर देखा तो वहां उसे एक पत्थर दिखाई दिया। चरवाहे ने विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल कर उस पत्थर को निकालने का प्रयास किया। इसी प्रयास में वह थक-हारकर सो गया तो भगवान शिव ने उसे सपने में इस शिवलिग की पूजा करने को कहा। यह भी माना जाता है कि महाभारत काल में यह इलाका पांडव पुत्रों के अधीन था।
संत बाबा कारू के आराध्य देव थे बाबा नाकुचेश्वर
महिषी प्रखंड के ही महपुरा स्थित लोक देवता सन्त शिरोमणि बाबा कारू का नाकुचेश्वर महादेव आराध्य देव थे। कहा जाता है कि कारू बाबा प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद नाकुचेश्वर महादेव की पूजा अर्चना करते थे। उनपर नाकुचेश्वर महादेव की असीम कृपा थी, जिस कारण वे बाबा नकुचेश्वर के परम प्रिय भक्तों में एक थे। उन्हीं के आशीर्वाद से कारू बाबा संत और लोक देवता के रूप में पूजे जाने लगे। लोगों का कहना है कि बाबा नाकुचेश्वर की भक्ति पर प्रसन्न होने के कारण बाबा कारू को शिव दर्शन देते थे।
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कैसे पहुँचे –
बस द्वारा सहरसा बस स्टैंड उतरें । वहां से रिफ्युजी कॉलोनी स्थि स्टैंड से बस या टेम्पो पकड़कर महिषी पहुँच सकते हैं ।
निकटतम रेलवे स्टेशन – सहरसा (22 किलोमीटर)
निकटतम हवाई अड्डा – दरभंगा (92.6 किलोमीटर)