मुहर्रम मनाने वाले शत-प्रतिशत लोग हिंदू समुदाय से हैं। ग्रामीण राजेंद्र साह, जय प्रकाश साह, शंकर साह और विकास कुमार साह कहते हैं कि उनके पूर्वज छेदी साह और वकाली मियां की गहरी दोस्ती थी। जब वकाली मियां यह इलाका छोड़कर जा रहे थे, उस समय उन्होंने अपने मित्र को हर साल इस मजार पर मोहर्रम मनाने का वादा लिया था। बस इसी को मानते हुए कई साल बीतने के बावजूद पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी इस गांव के लोग मुहर्रम मनाते हैं।
मुहर्रम मनाने वाले शत-प्रतिशत लोग हिंदू समुदाय से हैं। ग्रामीण राजेंद्र साह, जय प्रकाश साह, शंकर साह और विकास कुमार साह कहते हैं कि उनके पूर्वज छेदी साह और वकाली मियां की गहरी दोस्ती थी। जब वकाली मियां यह इलाका छोड़कर जा रहे थे, उस समय उन्होंने अपने मित्र को हर साल इस मजार पर मोहर्रम मनाने का वादा लिया था। बस इसी को मानते हुए कई साल बीतने के बावजूद पीढ़ी दर पीढ़ी आज भी इस गांव के लोग मुहर्रम मनाते हैं।
पूर्व प्रमुख मनोज मंडल कहते हैं कि इस गांव का यह एक अनोखा इतिहास है। इससे न सिर्फ सौहार्द झलकता है, बल्कि एक मित्र द्वारा अपने मित्र से किए गए वादे को निभाने के लिए आज भी कैसे पीढ़ी दर पीढ़ी के लोग इसे कायम रखे हुए हैं, यह भी एक अनोखी मिसाल है।
गांव के हिंदू परिवारों की बड़ी आबादी रोजा रखती है और पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार ताजिया का जुलूस निकालती है। इसमें दोनों समुदायों के लोगों की सहभागिता रहती है। मोहर्रम को लेकर यहां सभी तैयारी पारंपरिक रीति के अनुसार होती है। लोग नियमानुसार अखाड़ा सजाते हैं। इमाम हुसैन के जयकारे के साथ जुलूस निकाला जाता है।
गांव के हिंदू परिवारों की बड़ी आबादी रोजा रखती है और पारंपरिक रीति-रिवाज के अनुसार ताजिया का जुलूस निकालती है। इसमें दोनों समुदायों के लोगों की सहभागिता रहती है। मोहर्रम को लेकर यहां सभी तैयारी पारंपरिक रीति के अनुसार होती है। लोग नियमानुसार अखाड़ा सजाते हैं। इमाम हुसैन के जयकारे के साथ जुलूस निकाला जाता है।
निशान लेकर दोनों समुदाय के लोग सामूहिक रूप से करतब दिखाते हैं। यहां झरनी गाते हुए फातिया पढ़ा जाता है और मजार पर चादरपोशी भी की जाती है। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल होती हैं। गांव में स्थित स्व। छेदी साह के मजार (समाधि) से मुहर्रम का जुलूस निकालने की पुरानी परंपरा है। पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा आज दोनों समुदायों की एकता की मिसाल है।
निशान लेकर दोनों समुदाय के लोग सामूहिक रूप से करतब दिखाते हैं। यहां झरनी गाते हुए फातिया पढ़ा जाता है और मजार पर चादरपोशी भी की जाती है। इसमें बड़ी संख्या में महिलाएं भी शामिल होती हैं। गांव में स्थित स्व। छेदी साह के मजार (समाधि) से मुहर्रम का जुलूस निकालने की पुरानी परंपरा है। पूर्वजों द्वारा शुरू की गई परंपरा आज दोनों समुदायों की एकता की मिसाल है।
साभार – न्यूज 18