वैसे तो अमृता प्रीतम पंजाबी भाषा की लेखिका हैं लेकिन हिंदी भाषा के पाठकों में भी वे खासी लोकप्रिय हैं। वे हिंदी फिल्मों की कई हिरोइन से भी अधिक खूबसूरत थीं। उनके साहित्य में भी सौंदर्य की झलक मिलती है।
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अमृता को जानना है तो उनकी आत्मकथा रसीदी टिकट पढ़ सकते हैं। काफी रोचक है उनकी जीवनयात्रा। कागज ते कैनवास भी पढ़ने लायक है। साहिर लुधियानवी जैसे बेहतरीन शायर से मुहब्बत, लेकिन साहिर हिम्मत नहीं कर सके। इस वजह से दोनों शादी के बंधन में नहीं बंध पाए। ये टीस दोनों के लेखन में देखी और महसूस की जा सकती है। उसके बाद इमरोज से प्रेम। इमरोज की लाजवाब पेंटिंग में अमृता और भी आकर्षक लगती हैं।
यूं हुई अमृता साहिर की पहली मुलाकात
अमृता प्रीतम साहिर लुधियानवी से बेपनाह मोहब्बत करती थीं। उनकी साहिर से पहली मुलाकात साल 1944 में हुई थी। वह एक मुशायरे में शिरकत कर रही थीं और वो साहिर से यहीं मिली। वहां से लौटने के दौरान बारिश हो रही। अपनी और साहिर की इस मुलाकात को अमृता कुछ इस कदर बयां करती है।
“मुझे नहीं मालूम के साहिर के लफ्जों की जादूगरी थी या उनकी खामोश नजर का कमाल था लेकिन कुछ तो था जिसने मुझे उनकी तरफ खींच लिया। आज जब उस रात को मुड़कर देखती हूं तो ऐसा समझ आता है कि तकदीर ने मेरे दिल में इश्क का बीज डाला जिसे बारिश की फुहारों ने बढ़ा दिया।”
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सिगरेट की नहीं साहिर की लत थी
अपनी जीवनी ‘रसीदी टिकट’ में अमृता एक दौर का जिक्र करते हुए बताती हैं कि किस तरह साहिर लाहौर में उनके घर आया करते थे और लगातार सिगरेट पिया करते थे। अमृता को साहिर की लत थी। साहिर का चले जाना उन्हें नाकाबिल-ए-बर्दाश्त था। अमृता का प्रेम साहिर के लिए इस कदर परवान चढ़ चुका था कि उनके जाने के बाद वह साहिर के पिए हुए सिगरेट की बटों को जमा करती थीं और उन्हें एक के बाद एक अपने होठों से लगाकर साहिर को महसूस किया करती थीं। ये वो आदत थी जिसने अमृता को सिगरेट की लत लगा दी थी।
यह आग की बात है, तूने यह बात सुनाई है
यह जिंदगी की वही सिगरेट है,जो तूने कभी सुलगाई थी
चिंगारी तूने दी थी, यह दिल सदा जलता रहा
वक्त कलम पकड़ कर, कोई हिसाब लिखता रहा
जिंदगी का अब गम नहीं, इस आग को संभाल ले
तेरे हाथ की खेर मांगती हूं, अब और सिगरेट जला ले।
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कभी-कभी मेरे दिल में ख्याल आता है
साहिर के लिखे गीत, अमृता के लिए उनकी मोहब्बत बयां करते हैं। खास कर कभी कभी फिल्म का यह गीत कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिए।सिर्फ अमृता ही उनकी सिगरेट नहीं संभलाती थी बल्कि साहिर भी उनकी चाय की प्याली संभाल कर रखते। एक बार की बात है साहिर से मिलने कोई कवि या मशहूर शायर आए हुए थे। उन्होंने देखा साहिर की टेबल पर एक कप रखा है जो गंदा पड़ गया है। उन्होंने साहिर से कहा कि आप ने ये क्यों रख रखा है? और इतना कहते हुए उन्होंने कप को उठा कर डस्टबीन में डालने के लिए हाथ बढाया कि तभी साहिर ने उन्हें तेज आवाज में चेताया कि ये अमृता की चाय पीया हुआ कप है इसे फेंकने की गलती न करें।