मई में कम से कम 1.53 करोड़ भारतीयों ने अपनी नौकरी गंवाई है। यह एक ऐसी स्थिति है जो उपभोक्ता खर्च और आर्थिक पुनरुद्धार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, मई में कार्यरत लोगों की संख्या 37.54 करोड़ हो गई जो अप्रैल में 39.07 करोड़ थी यानी 1.53 करोड़ की गिरावट। अप्रैल और मई में वेतनभोगी और गैर-वेतनभोगी नौकरियों में कार्यरत लोगों की संख्या में लगभग 2.3 करोड़ की गिरावट हुई क्योंकि दूसरी लहर में लाखों भारतीय महामारी से संक्रमित हो गये और राज्यों ने वायरस के प्रसार को रोकने के लिये लॉकडाउन लगाया।
ताजा आंकड़ों से यह भी पता चला है कि बेरोजगार लेकिन सक्रिय रूप से नौकरियों की तलाश करने वाले लोगों की संख्या 1.7 करोड़ से बढ़कर 5.07 करोड़ हो गई है जो काम करने की इच्छा को तो बेहतर बताता है लेकिन अवसरों की कमी को दर्शाता है। हालांकि, वेतनभोगी नौकरियों पर महामारी का प्रभाव अपेक्षाकृत कम है और बड़े पैमाने पर शहरी भारत तक ही सीमित है। लेकिन व्यवसायियों, छोटे व्यापारियों और दिहाड़ी मजदूरों को इस महामारी के कारण जबरदस्त आर्थिक नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।
अप्रैल में 12.7 करोड़ छोटे व्यवसायों और दैनिक मजदूरी के काम से जुड़़े हुये थे लेकिन मई के महीने में यह संख्या 11.0 करोड़ हो गई। मई में कम से कम 90 लाख एक्स्ट्रा लोग कृषि गतिविधियों से जुड़ गये जिससे खेती में कार्यरत लोगों की कुल संख्या 12.37 करोड़ हो गई है। आर्थिक विकास संस्थान में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर अरूप मित्रा ने कहा- पिछले साल की तालाबंदी के बाद से नौकरी का बाजार फैला हुआ था। दिसंबर से मार्च के बीच स्थिति ऊपर दिख रही थी, लेकिन दूसरी लहर ने ज्यादा नुकसान किया है। हम जो महसूस नहीं कर रहे हैं वह यह है कि नौकरी छूटने से निजी मांग कम हो रही है। नौकरी गंवाने वाले लोगों के पुनरुद्धार पर असर पड़ेगा। यदि उपभोक्ता के पास आय नहीं है, तो वह खर्च कैसे करेगा?
मित्रा ने कहा- ग्रामीण भारत में गैर-कृषि अवसर कम हो गए हैं और वहाँ एक अधिशेष कार्यबल है। लोग खेती में लग रहे हैं, अर्थपूर्ण है या नहीं, यह अलग बहस है। इसका मतलब यह भी है कि अधिक लोग एक ही काम कर रहे हैं, जिसका अर्थ है कम उत्पादकता और कम आय।