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यादों के आयने से 1975 का बाढ़, वाया दिनेश मिश्र

...बाढ़ प्राकृतिक प्रकोप नहीं है, लोगों का बनाया हुआ प्रकोप है। लूट चल रही है और जनता पर जुल्म ढाया जा रहा है।’’

in बिहार, सोशल मीडिया
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वर्ष 1975 में बागमती नदी के ढेंग से रुन्नी सैदपुर तक के अधिकांश तटबन्ध का निर्माण कार्य पूरा हो चुका था मगर उसमें जगह-जगह पर स्लुइस गेट के निर्माण के लिए गैप छोड़ा हुआ था। इस बार नदी ने ढेंग पुल पर अपने लेवल के पिछले सभी रिकार्डों को तोड़ दिया और यह पानी इन्हीं छोड़े गए गैप से तीर की तरह बाढ़ के रूप में तथाकथित रूप से सुरक्षित क्षेत्रों की ओर निकला और उसके सामने जो कुछ भी पड़ा उसे बर्बाद कर दिया। इस बार बागमती ढेंग और हायाघाट में खतरे के निशान से क्रमशः 1.90 मीटर (सवा छः फुट) और 2.34 (साढ़े सात फुट) ऊपर बही। ढेंग पुल के पास नदी का अब तक का जो सबसे ऊँचा लेवल था, इस बार नदी उसे पार कर के 72.00 मीटर के लेवल तक बही। छः बार नदी ने ढेंग में खतरे के निशान को पार किया और 14 दिनों तक उसी स्तर पर बहती रही जबकि हायाघाट में नदी खतरे के निशान के ऊपर तो सिर्फ दो बार बही पर 34 दिनों तक वहाँ बनी रही। इस साल की बाढ़ में बागमती घाटी के भारतीय भाग में सीतामढ़ी जिले के डुमरा, रीगा, मेजरगंज, बैरगनियाँ, शिवहर, पिपराही, बेलसंड तथा मुजफ्फरपुर के कटरा, औराई, गायघाट; पूर्वी चम्पारण के ढाका, पताही, पकड़ी दयाल, मधुबन और दरभंगा जिले के सिंघवारा, हायाघाट और बहादुरपुर प्रखंडों में भारी तबाही मची। बाढ़ का पानी 1890 वर्ग किलोमीटर पर फैला, 1.58 लाख हेक्टेयर पर लगी खड़ी फसल मारी गई, 74,939 घर घिरे, आठ लोगों की जान गई और जान-माल के कुल नुकसान की कीमत सात करोड़ सतहत्तर लाख रुपये आंकी गई।

पीताम्बर सिंह का बिहार विधान सभा में कहना था, ‘‘…पिछले 60 साल के बाद, खास कर 1914 के बाद ऐसी बाढ़ आयी है। इससे पता यह चलता है कि निश्चित इसमें परिवर्तन हो रहा है। इस ओर एक्सपर्ट को ध्यान देना चाहिये कि इसका इलाज करने की कोशिश करनी चाहिये। इस साल 24 घण्टा पहले में 26 इंच पानी हुआ था और 7 फीट पानी की दीवार वहाँ से आ रही थी। 24 घण्टा पहले इस बात की सूचना देने के बाद भी सरकार की ओर से कोई व्यवस्था नहीं की गयी। नतीजा यह हुआ कि इतना पानी आ गया कि लोग रेलवे लाइन पर, जिस पर 1-2 फीट पानी बह रहा था, 40-50 दिनों तक खड़े रहे, कहीं बैठने की जगह नहीं थी। रेलवे लाइन पर जब यह नजारा था, तो आप समझ सकते हैं कि बाकी गाँव के लोगों की क्या हालत होगी। …दूसरी बात इस सिलसिले में चर्चा आयी है कि 8 स्थानों में बांध टूटा है।… इस पर सरकार को देखना चाहिए कि बांध टूटने का कारण क्या है और बांध को गत साल ही मजबूत क्यों नहीं किया गया? सिंचाई विभाग का जब कर्मचारी भी वहाँ पर नहीं था तो यह कहना कि चूहा के मान के कारण बांध टूट गया, कहाँ तक सही है जबकि बांध 9 बजे रात में टूटा है? …बांध टूटने के बाद यहाँ के पक्के मकान तथा अन्य सभी घर उजड़ गए और आज वहाँ पूरा गाँव नहीं है। आज वहाँ की यह स्थिति है। लोग दूसरे-दूसरे के गौशाला में रह रहे हैं। चूहे की बात जो कही जा रही है वह मात्र बहाना बनाने की कोशिश की जा रही है। अतः इसकी जांच करने की जरूरत है। …साथ ही इसके लिए जो जिम्मेवार हों, उसको सजा देने की भी जरूरत है।’’

इस बार की बाढ़ के कारण समस्तीपुर जिले के हसनपुर, सिंघिया, वारिसनगर, कुशेश्वर स्थान और रोसड़ा पूर्ण रूप से प्रभावित हुए हैं। मेरे ख्याल में इसके दो कारण हैं। एक तो बिहार के इंजीनियरों ने स्थायी रूप से सिंघिया, कुशेश्वर स्थान, हसनपुर आदि जगहों को बाढ़ग्रस्त क्षेत्र घोषित कर दिया है। बिहार की जितनी भी नदियां-कमला नदी, करेह नदी, बागमती नदी, कोसी नदी हैं सभी के मुंह को लाकर इस इलाके में छोड़ दिया गया है। इसके लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। लगभग 35 वर्षों के बाद भी उस इलाके की स्थिति में अभी तक कोई परिवर्तन नहीं आया है।

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जिस परिस्थिति में इस बार सीतामढ़ी के लोग फंस गए थे उसमें बिना बाहरी मदद के जिन्दगी बसर कर पाना नामुमकिन था मगर सरकार रिलीफ पहुँचाने में कारगर नहीं हो पा रही थी। त्रिवेणी प्रसाद सिंह ने सदन को बताया, ‘‘सीतामढ़ी की हालत यह है कि वहाँ पर जितनी नदियां हैं, बागमती, लखनदेई, अधवारा, मालूम होता था कि सभी ने एक साजिश बना कर, कॉन्सपिरेसी करके चढ़ाई कर दिया है वहाँ की पोपुलेशन पर। वहाँ की हालत यह है कि मिट्टी का एक भी घर बाकी नहीं है, जो न गिरा हो। आज खर के दो चार परसेन्ट घर बाकी हैं, वह भी ज्यों-ज्यों बाढ़ घटती है, गिरते जा रहे हैं। लोगों को खाने के लिए नहीं है। हमारे क्षेत्र में बाजपट्टी, रुन्नी सैदपुर और पुपरी यह 3 प्रखंड पड़ते हैं, इसके अलावा 12 प्रखंड सीतामढ़ी में हैं। इन प्रखंडों में करीब 5 तारीख तक रोटी बांटी गयी और हालत यह थी कि आज रोटी बनी, कल पहुँची और परसों बांटी गयी। यह रोटी मनुष्य के खाने के लायक नहीं थी। इसलिए लोग उसे जानवरों को खिला देते थे। अब कुछ खैरात का काम हुआ। हमारे रुन्नी सैदपुर प्रखंड में 200 क्विंटल चौथे रोज एलौटमेंट हुआ, परसों उसको उठाकर ले गए, कल से वितरण शुरू हुआ है 9 दिनों के बाद और वह भी कितना परसेन्ट वहाँ मिलता है? किसी पंचायत में एक प्रतिशत, किसी में डेढ़ प्रतिशत, ज्यादा से ज्यादा 2 प्रतिशत, 80-90 परसेन्ट को खाने के लिए नहीं है।’’ वे चाहते थे कि ऐसी व्यवस्था की जाए कि कम से कम 70-75 प्रतिशत प्रभावित बाढ़ की एक बानगी यह भी लोगों तक राहत पहुँचाई जाए।

सदन में सिंचाई विभाग के अधिकारियों के प्रति गुस्सा उफान पर था और अब तक इमरजेन्सी भी लग चुकी थी। गुस्से की यह अभिव्यक्ति इन अधिकारियों को गिरफ्तार करने की मांग तक जा पहुँची। रमई राम का कहना था, ‘‘सिंचाई विभाग के पदाधिकारीगण सालों भर मोटरकार में पेट्रोल लेकर अपने परिवार के साथ घूमते हैं और नाजायज टी. ए. लेते हैं। जब बाढ़ आती है, तो मरम्मती और देख-रेख का काम शुरू करते हैं और झूठा बिल बनाते हैं। इसलिए मैं सरकार से अनुरोध करता हूँ कि जो बांध टूट गया है, उसकी जांच की जाए और चीफ इन्जीनियर से लेकर ओवरसियर तक, मैं कहता हूँ कि, जिसकी जवाबदेही के कारण बांध टूटा है, उनको जेल में डाल दिया जाय। बाढ़ के कारण आदमी और जानवर बह गए हैं, मैं खुद नाव में चढ़ कर 7 दिनों तक हर गाँव में गया हूँ, जानवर बह गए हैं, चारा तक नहीं मिल रहा है, चारों तरफ पानी बह रहा है।’’ विधायक भोला प्रसाद ने उन धाराओं का भी जिक्र किया जिनके तहत इंजीनियरों के खिलाफ कार्यवाही की जा सकती थी। ‘‘तो, जो अभियंता बांध के मेन्टीनेन्स के चार्ज में हैं उनको आप ससपेन्ड कीजिए। उन्हें मीसा के अन्दर, डी. आई. आर. के अन्दर बंद कीजिए। नहीं तो, इमर्जेन्सी का कोई माने नहीं है क्योंकि कोई वजह नहीं है कि लोग मेन्टीनेन्स के चार्ज में रहें और बांध टूट जाय। ऐसा नहीं करेंगे, तो बाढ़ का दौर चलता रहेगा। आप दस-पाँच अभियंताओं को पकड़ कर बन्द नहीं करते हैं, जिनकी गलती से बांध टूटा है तो यह बाढ़ आती ही रहेगी।

 

…बाढ़ प्राकृतिक प्रकोप नहीं है, लोगों का बनाया हुआ प्रकोप है। लूट चल रही है और जनता पर जुल्म ढाया जा रहा है।’’

हालात बागमती के निचले इलाके में भी अच्छे नहीं थे और अब कोसी, कमला तथा सोरमार हाट से बदलाघाट तक 1950 के दशक में बने बागमती के निचले इलाकों में बने तटबन्धों का दुष्प्रभाव सामने आने लगा था। रामाश्रय राय का मानना था, ‘‘इस बार की बाढ़ के कारण समस्तीपुर जिले के हसनपुर, सिंघिया, वारिसनगर, कुशेश्वर स्थान और रोसड़ा पूर्ण रूप से प्रभावित हुए हैं। मेरे ख्याल में इसके दो कारण हैं। एक तो बिहार के इंजीनियरों ने स्थायी रूप से सिंघिया, कुशेश्वर स्थान, हसनपुर आदि जगहों को बाढ़ग्रस्त क्षेत्र घोषित कर दिया है। बिहार की जितनी भी नदियां-कमला नदी, करेह नदी, बागमती नदी, कोसी नदी हैं सभी के मुंह को लाकर इस इलाके में छोड़ दिया गया है। इसके लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। मैं मुख्यमंत्री से आग्रह करूंगा कि जब इसके लिए कोई योजना नहीं है, तो वहाँ के लोगों को वहाँ से हटा कर दूसरी जगह रख दें।’’ लगभग 35 वर्षों के बाद भी उस इलाके की स्थिति में अभी तक कोई परिवर्तन नहीं आया है।

बागमती के ऊपरी हिस्से में अब तटबन्ध बन चुके थे और यह भी अनुभव किया गया कि इन तटबन्धों की मदद से बाढ़ नियंत्रण के क्षेत्र में कुछ होने जाने वाला नहीं था तब नुनथर बांध की बात शुरू हुई। राम स्वरूप सिंह का कहना था, ‘‘इस बार जो भयंकर बाढ़ आयी है, खासकर सीतामढ़ी में, उसके लिये सरकार की गलत नीति ही जिम्मेवार है, क्योंकि बागमती के किनारे जो बांध बांधने का फैसला था और जिसे फेजवाइज करना था उसे नहीं करके रामनगर से लेकर सैदपुर के सारे इलाके में तटबंध के बांधने का काम शुरू किया गया। वह भी ऐसा हुआ कि कहीं पर एक मील तक काम छोड़ दिया गया, कहीं आध मील तक छोड़ दिया गया, कहीं एक सौ चैन तक छोड़ दिया गया। निश्चित दायरे में काम नहीं किया गया, इसलिये बाढ़ का यह रूप आया। पिछले सौ वर्षों में सीतामढ़ी में इस तरह की बाढ़ नहीं आयी थी। 1954 में सीतामढ़ी में बाढ़ आयी थी, लेकिन वह भी इस रूप में नहीं आयी थी। अभी सीतामढ़ी की सभी सड़कें बर्बाद हो चुकी हैं, अभी भी मुजफ्फरपुर से संबंध बिलकुल टूटा हुआ है, न बस से इसका संबंध है न रेल से, इसलिये इसकी गम्भीरता को आप समझ सकते हैं… पिछली बार हम लोगों ने कहा था कि बसबिट्टा के नजदीक बांध टूटता है, इस बार भी इस निकट का बांध टूटा है जिसके चलते हम लोगों के इलाके में बाढ़ आयी है।

हमलोग बराबर कहते आये हैं कि बागमती के इस स्थान पर बांध देना जरूरी है। नेपाल से मिलकर एक जलाशय बनाना जरूरी है। इस साल जो बाढ़ आयी है उससे नेपाल को भी काफी नुकसान हुआ है, और मैं समझता हूँ कि अगर सरकार की ओर से प्रयास किया जाए, तो हम लोग इसको करा सकेंगे। इसलिये सरकार को इस पर विचार करना चाहिए।’’ कहना न होगा कि तटबन्धों के निर्माण के साथ ही बागमती ने तटबंधों में अपनी गिरफ्तारी के खिलाफ बग़ावत शुरू कर दी थी और पिपराही प्रखंड के नारायणपुर गाँव के पास यह बन्धन तोड़ कर बाहर निकल आने की फिराक में थी। इस बाढ़ और विधान सभा में हुईन बहस की यह एक और खासियत थी कि इसमें भविष्य में होने वाली सारी घटनाओं और वाद-विवाद की बुनियाद रखी गयी थी। इस समय देश में इमरजेन्सी लग चुकी थी और उसके साथ ही इंजीनियरों के लिए मीसा और डी.आइ.आर. के प्रावधानों को लागू करने का भी प्रस्ताव आया। तटबन्धों का निर्माण कार्य पूरा होने के पहले ही उनकी उयोगिता पर प्रश्न चिह्न लग चुका था और मोह भंग होने की स्थिति में 1953 में प्रस्तावित नुनथर बांध पर विधान सभा में टिप्पणी सुनाई पड़ी। रिलीफ में मिलने वाली सामग्री का परिमाण अब तक बहस का मुद्दा हुआ करता था पर अब उसकी गुणवत्ता पर भी टिप्पणी शुरू हो गयी थी।

1978 की बागमती की बाढ़

1978 आते-आते तक बागमती नदी का ढेंग से रुन्नी सैदपुर तक का तटबन्ध प्रायः पूरा हो चुका था। तटबन्धों में बीच-बीच में जो गैप छूटे हुए थे उन्हें भी या तो पाट दिया गया था या वहाँ डिजाइन के अनुसार स्लुइस गेट बनाये जा चुके थे। तटबन्ध निर्माण के बाद यह पहला मौका था जब तटबन्धों को अपनी उयोगिता सिद्ध करनी थी। 1978 का वर्ष बिहार में बाढ़ की दृष्टि से एक बुरा साल था। इस साल बाढ़ की पहली दस्तक जुलाई महीने में पड़ी और इसी दौर में बागमती नदी ने अपने खतरे के निशान को न केवल पार किया बल्कि 16 जुलाई को नदी में अब तक का सर्वाधिक प्रवाह 6370 क्यूसेक (2,25,000 क्यूसेक) भी देखा गया। इस दिन ढेंग का जलस्तर 72.18 मीटर था जो कि अब तक के सर्वाधिक जलस्तर 72.01 मीटर से अधिक था। बेनीबाद में बाढ़ का पानी पिछले सभी रिकार्डों के ऊपर 49.514 मीटर तक गया। अगस्त महीने में भी नदी का पानी तटबन्धों के निर्माण के कारण अटके पानी की निकासी के लिए ढेंग, बेनीबाद और हायाघाट में खतरे के निशान के ऊपर बहा। इस बार स्थानीय लोगों ने बागमती के बायें एफ्लक्स बांध को ढेंग पुल के ऊपर कई जगह काटा और ढेंग के नीचे भी इस बांध को लोगों ने तीन जगह काटा। लालबकेया के तटबन्ध की भी वही गत बनी जिसकी वजह से पूर्वी चम्पारण में तबाही हुई और अधवारा समूह की नदियों के कारण सीतामढ़ी, मधुबनी, दरभंगा और मुजफ्फरपुर जिले तबाह हुए।

बाढ़ इस बार राज्य में जुलाई, अगस्त और सितम्बर तीनों महीनें बनी रही। बाढ़ 1971, 1974, 1975 और 1976 में भी अच्छी खासी थी और इसके पहले कि पिछली बाढ़ से हुई तबाही को समेटा जाता, अगली बाढ़ हाजिर थी। रुन्नी सैदपुर के उत्तर में कहीं-कहीं इन तटबन्धों का काम बाकी था और इन निर्माणाधीन बागमती तटबन्धों की तो हालत खस्ता थी ही, सीतामढ़ी-मुजफ्फरपुर मार्ग, रीगा-मेजरगंज मार्ग और सीतामढ़ी-सुरसंड मार्ग भी जर्जर अवस्था में पहुँच गया। राष्ट्रीय स्तर पर इस साल पश्चिम बंगाल में अक्टूबर के पहले हफ्ते में दुर्गापूजा के समय अभूतपूर्व बाढ़ आई थी और सबका ध्यान वहीं केन्द्रित था।

 

डॉ. दिनेश कुमार मिश्र की पुस्तक ‘बागमती की सद्गति’ से साभार वाया इंडिया वाटर पोर्टल

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