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जन्मदिन विशेष : जब सिग्नेचर ऑटोग्राफ में बदल जाए तब है कामयाबी

एपीजे अब्दुल कलाम को भारत रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें साल 1997 में मिला था। इसके अलावा उन्हें पद्म विभूषण, रामानुजन पुरस्कार, मानद डॉक्टेरेट, डॉक्टर ऑफ साइंस आदि जैसे कई सम्मान मिल चुके थे।

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भारत के पूर्व राष्ट्रपति, महान वैज्ञानिक और एक अच्छे शिक्षक के रूप में लोकप्रिय एपीजे अब्दुल कलाम का आज जन्मदिन है। मिसाइलमैन के नाम से मशहूर एपीजे अब्दुल कलाम की आज 88वीं जयंती है। 15 अक्टू्बर 1931 को तमिलनाडु के रामेश्व्रम में पैदा हुए कलाम साहब का पूरा जीवन देश सेवा और मानवता को समर्पित रहा। अपने व्योस्तक जीवन में भी कलाम साहब ने कभी पठन-पाठन से खुद को दूर नहीं किया। गरीबी में जन्में अब्दुल कलाम रेलवे स्टेशन पर अखबार बेचा करते थे लेकिन उन्होंने अपने हालातों के आगे कभी हिम्मत नहीं हारी और सपनों को मरने नहीं दिया। यही वजह है कि एपीजे अब्दुल कलाम का यह विचार आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है ।

 

वैज्ञानिक से लेकर राष्ट्रपति तक का सफर

एपीजे अब्दुल कलाम ने मुख्य रूप से एक वैज्ञानिक के रूप में चार दशकों तक रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) व इसरो को भी संभाला और देश में सैन्य मिसाइल के विकास के प्रयासों में भी शामिल रहे। पूर्व राष्ट्रपति कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931 को रामेश्वरम में हुआ था। उन्होंने अपनी पढ़ाई सेंट जोसेफ कॉलेज, तिरुचिरापल्ली से की थी। उन्हें साल 2002 में भारत का राष्ट्रपति बनाया गया था। वहीं, पांच वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद वे वापस शिक्षा, लेखन और सार्वजनिक सेवा में लौट आए थे।

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पेशे से मछुआरा परिवार से आने वाले एपीजे अब्दुल कलाम पांच भाई और पांच बहन थे। इनके पिता नाविक थे और मछुआरों को किराए पर नाव दिया करते थे। ऐसा माना जाता है कि कलाम साहब का बचपन काफी गरीबी में बीता है। यही वजह है कि इतने बड़े परिवार का भरन-पोषण करना और शिक्षा दिलाना जब कलाम साहब के पिता के लिए मुश्किल होने लगा तब एपीजे अब्दुल कलाम ने बचपन में अखबार भी बेचा। अखबार बेचकर वह अपने पढ़ाई का खर्च भी निकालते थे।

 

27 जुलाई, 2015 को हुआ निधन

पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम का 27 जुलाई, 2015 को शिलॉंग में निधन हो गया था वे आईआईएम शिलॉन्ग में लेक्चर देने गए थे, इसी दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था। उनके निधन के बाद सात दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा भी की गई थी।

 

1997 में मिला भारत रत्न

एपीजे अब्दुल कलाम को भारत रत्न अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था। यह सम्मान उन्हें साल 1997 में मिला था। इसके अलावा उन्हें पद्म विभूषण, रामानुजन पुरस्कार, मानद डॉक्टेरेट, डॉक्टर ऑफ साइंस आदि जैसे कई सम्मान मिल चुके थे।

 

इतना ही नहीं कलाम साहेब के जीवन से जुड़ी वो रोचक बातें भी हम आपको बताने जा रहे हैं, जिनसे आप अब तक अनजान थे ।

 

चुकाई पाई-पाई

राष्ट्रपति कलाम सादगी, मितव्ययिता और ईमानदारी जैसे उन गुणों की मिसाल थे जो आज के राजनीतिक परिदृश्य में दुर्लभ हो चले हैं। एक बार कलाम का पूरा परिवार उनसे मिलने दिल्ली आया। वे कुल 52 लोग थे, जिनमें उनके 90 साल के बड़े भाई से लेकर उनकी डेढ़ साल की परपोती भी शामिल थी। स्टेशन से सभी को राष्ट्रपति भवन लाया गया, जहां वह 8 दिन तक भवन में रुके। उनके आने-जाने से लेकर खाने-पीने तक, यहां तक की एक प्याली चाय का खर्चा भी कलाम ने अपनी जेब से दिया। इतना ही नहीं कलाम ने अपने अधिकारियों का भी साफ तौर पर निर्देश दिया था कि इन मेहमानों के लिए राष्ट्रपति भवन की कारें इस्तेमाल नहीं की जाएंगी। रिश्तेदारों के खाने-पीने के सारे खर्च का ब्यौरा अलग से रखा गया। और जब वह सभी वापस गए तब कलाम ने अपने निजी खाते से 3,52,000 रुपये का चेक काट कर राष्ट्रपति कार्यालय को भेजा।

 

सिर्फ 2 छुट्टियां

जहां नेता छुट्टियों पर घूमने जाने के लिए बेकरार रहते हैं वहीं, क्या आप जानते है कि अब्दुल कलाम ने अपने पूरे राजनीतिक जीवन में सिर्फ दो छुट्टियां ली थीं। एक बार जब उनके पिता की मौत हुई थी और दूसरी, जब उनकी मां की मौत हुई थी।

 

दो सूटकेस लेकर पहुंचे राष्ट्रपति भवन

जब डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को राष्ट्रपति चुना गया था तो उनके स्वागत के लिए जोरो-शोरो से तैयारियां की गईं, राष्ट्रपति भवन को खूबसूरती से सजाया गया। वहीं ये तमाम तैयारी इसलिए की गई थीं कि देश के नए राष्ट्रपति का सामान ठीक से भवन में रखा जा सके। लेकिन इस बात को काफी कम लोग जानते हैं कि जब अब्दुल कलाम वहां पहुंचे तो वो सिर्फ 2 सूटकेस लेकर पहुंचे थे। एक सूटकेस में उनके कपड़े तथा दूसरी में उनकी प्रिय किताबें थी।

 

कभी नहीं रखा उपहार

देश के 11वें राष्ट्रपति कलाम ने कभी किसी का उपहार नहीं रखा। एक बार किसी ने उन्हें 2 पेन तोहफे में दिए थे जिन्हें उन्होंने राष्ट्रपति पद से विदा लेते वक्त खुशी से लौटा दिए थे। उनका कहना था कि ‘उनके पिता ने सिखाया है कि कोई उपहार कबूल मत करो।’

 

मुशर्रफ को दिया था 30 मिनट लेक्चर

जब साल 2005 में जनरल परवेज मुशर्रफ भारत आए, तब वो तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ-साथ राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम से भी मिले। मुलाकात से एक दिन पहले जब कलाम के सचिव पीके नायर उनके पास गए और उन्होंने बताया कि “मुशर्रफ जरूर कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे। आपको इसके लिए तैयार रहना चाहिए।” इसपर कलाम एक क्षण के लिए ठिठके, और कहा, ”उसकी चिंता मत करो। मैं सब संभाल लूंगा।” अगले दिन ठीक 30 मिनट तक चली अब्दुल कलाम और मुशर्रफ की मुलाकात में मुशर्रफ ने सिर्फ कलाम की सुनी। कलाम उनको ‘संक्षेप’ में ‘पूरा’ (प्रवाइडिंग अर्बन फैसिलिटीज टु रूरल एरियाज) कॉन्सेप्ट का मतलब समझाते रहे और बताते रहे कि आने वाले 20 सालों में दोनों देश इसे कैसे हासिल कर सकते हैं। वहीं मुलाकात के 30 मिनट पूरे होने के बाद मुशर्रफ ने कहा, “धन्यवाद राष्ट्रपति महोदय, भारत काफी भाग्यशाली है कि उसके पास आप जैसा एक वैज्ञानिक राष्ट्रपति है।

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