अनाज मंडी स्थित चार मंजिला इमारत में रविवार को आग और धुएं के बीच घिरे कई बदनसीबों को अपनी मौत का अंदाजा हो गया था। इनमें से कुछ ने अपने-अपने घरों पर परिजनों को फोन मिलाए। किसी ने मां से खुद को बचाने की गुहार लगाई तो किसी ने बूढ़े पिता का ढांढस बंधाया और कहा, अब शायद बच नहीं पाएंगे। लेकिन, आप हिम्मत मत हारना।
मां से बोला- मेरा दम घुट रहा है, बचा लो
अनाज मंडी की फैक्टरी में लगी आग में फंसे शाकिर हुसैन ने मां को फोन कर आग में फंसे होने की जानकारी दी थी। उसने बचाने की गुहार भी लगाई। बाद में परिजनों को उसका शव ही मिला।
शाकिर हुसैन के भाई जाकिर हुसैन ने बताया कि शाकिर ने सुबह मां को फोन किया था। उसने मां से कहा कि मैं आग में फंस गया हूं, दम घुट रहा है और मेरा बचना मुश्किल लग रहा है। मुझे बचा लो। फिर उसका फोन बंद हो गया। इसके बाद मां का (मधुबनी के मलमल गांव से) फोन आया। उन्होंने बताया कि शाकिर की बिल्डिंग में आग लग गई है। वह अंदर फंस गया है, उसे जाकर बचाओ। हालांकि, बाद में एलएनजेपी में उसका शव मिला है।
मोबाइल फोन लेने वापस गया था
शाकिर इमारत की चौथी मंजिल पर स्थित कपड़े की टोपी बनाने वाली फैक्टरी में काम करते थे। दूसरी फैक्टरी में काम करने वाले शाकिर के साथी इरशाद ने बताया कि वह शाकिर और पांच अन्य लड़के रात में टोपी बनाने की फैक्टरी में सोते थे।
आग लगने पर उसका धुआं सारी इमारत में फैलने लगा। आग लगने के बाद जान बचाने के लिए हम सब छत की तरफ भागे। शाकिर भी हमारे साथ ही कमरे से निकल गया था। मगर वह मोबाइल फोन और रुपये कमरे में ही भूल आया था। वह किसी को बिना बताए वापस कमरे में चला गया। उसके बाद वह वापस नहीं लौटा।
‘मर भी जाऊंगा, तो वहीं रहूंगा मैं’
करीब सात मिनट की बातचीत है ये। इसे सुनते हुए आप इतना निरीह, इतना बेबस महसूस करेंगे कि हद ही नहीं। आपको मुशर्रफ की डरी हुई आवाज़ सुनाई देगी। जो सांस लेने के लिए लगातार संघर्ष कर रहा है। एक रट लगी है कि अब नहीं बचने का मैं। दोस्त कहता है वो भागने की कोशिश करें। मुशर्रफ उन्हें बताते हैं कि भागने की कोई जगह नहीं। दोस्त पूछता है कि क्या फायर ब्रिगेड वाली गाड़ी नहीं पहुंची। मुशर्रफ नाउम्मीद हो गए हैं। कहते हैं, किसी ने किया होगा फोन। उनके बोलने में बस दो भाव हैं। एक, ये निश्चय कि अब वो मरने ही वाले हैं। कि उनका बच पाना मुमकिन नहीं। दूसरा, गिड़गिड़ाहट। वो बार-बार अपने दोस्त से कहते हैं कि वो उनके बच्चों, उनके परिवार का ध्यान रखे। मुशर्रफ कहते हैं-
भैया, ख़त्म होने वाला हूं आज मैं। टाइम कम बचा है, भागने का रास्ता नहीं है। मेरे परिवार का ख़याल रखना। तू ही है अब भाई।
मुशर्रफ कहते हैं-
मर भी जाऊंगा, तो वहीं रहूंगा मैं।
बीवी और तीन बच्चे…
मुशर्रफ अली उत्तर प्रदेश के बिजनौर के रहने वाले थे। वो दिल्ली कमाने-खाने आए थे। उनके परिवार में बीवी और तीन बच्चे हैं। मोनू से बात करते हुए उन्होंने आख़िरी लाइन कुछ यूं कही कि फलां आदमी से पांच हज़ार रुपये दिलवा देना। दोस्त ने आश्वसान दिया। उसके बाद बस मुशर्रफ की सांसों की आवाज़ रह गई फोन पर। छोटी-छोटी सांसें। जो बेहद दम लगाकर ली जा रही थीं। फिर सांसें और भी छोटी होती जाती हैं। और फिर रुक जाती हैं। आप रिकॉर्डिंग सुनते हुए उसकी आख़िरी सांस महसूस करते हैं। और किसी के मरने के पल का, उस पल की बेबसी का चश्मदीद बनकर आपको कितनी पीड़ा होती है, ये बताने के लिए शब्द नहीं बने।