
रसूल-ए-खुदा पैगंबर हजरत मोहम्मद साहब की पैदाइश का दिन ईद मिलादुन्नबी रविवार को है। पैगंबर साहब का भारत से भी नाता है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले के खुल्दाबाद में स्थित सैयद हजरत ख्वाजा चिश्ती रहमतुल्लाह अलैह की दरगाह में पैगंबर (ईश्वर के संदेशवाहक) की पोशाक और बाल आज भी रखे हैं। हर साल ईद मिलादुन्नबी के अवसर पर जायरीनों (श्रद्धालुओं) को इसकी जियारत (दर्शन) कराई जाती है।
दरगाह ट्रस्ट के वरिष्ठ सदस्य रफ्फिदीन रफीक ने दैनिक भास्कर APP को बताया कि औरंगाबाद शहर से 25 किलोमीटर दूर स्थित सूफियों के नगर खुल्दाबाद की इस दरगाह पर 704 साल से जियारत की यह परंपरा चली आ रही है। दरगाह के अंदर स्थित उत्तर-पूर्वी कमरे में पैगंबर साहब की पोशाक है। पैगंबर साहब की इन निशानियों को साल में सिर्फ एक बार आम लोगों के दर्शन के लिए रखा जाता है। ईद मिलादुन्नबी के मौके पर सुबह 5 बजे से रात 11 बजे तक आम श्रद्धालु दर्शन कर सकते हैं। सिर्फ नमाज के समय इसे देखने पर रोक रहती है।
चांदी के संदूक में रखे हैं पैराहन-ए-मुबारक
रफीक ने बताया कि पैगंबर का पैराहन-ए-मुबारक (पोशाक) को हैदराबाद के निजाम द्वारा दिए गए चांदी के संदूक और शीशम के बक्से में रखा गया है। इसे दर्शन के लिए दरगाह के बीच में चांदी के तख्त पर शीशे के बॉक्स में रखा जाता है।
महिलाएं नहीं करतीं पैराहन-ए-मुबारक का दीदार
इस पोशाक के दर्शन महिलाएं नहीं करती हैं। यहां अब लगभग हर धर्म के लोग देशभर से आते हैं। ज्यादातर लोग उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, तेलांगना और आंध्रप्रदेश के लोग शामिल हैं। सालाना उर्स के मौके पर यहां विदेशों से भी काफी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। शुरू में यहां सुबह पांच बजे से दोपहर एक बजे तक दर्शन होते थे, लेकिन भीड़ बढ़ने के कारण दर्शन का समय बढ़ा कर पहले शाम 7 बजे, फिर रात 9 बजे और अब रात 11 बजे तक कर दिया गया है।
22 सूफियों के पास से होते हुए खुल्दाबाद पहुंची पोशाक
पैगंबर मोहम्मद साहब की पोशाक 22 लोगों के पास से होते हुए औरंगाबाद के खुल्दाबाद पहुंची। पैगंबर साहब के शिष्य हजरत अली के पास से यह हजरत ख्वाजा बसन खत्री के पास आई। उनसे यह ख्वाजा अब्दुल बाहुद जैद तक पहुंची। इसके बाद यह हजरत ख्वाजा फैजल बिन अयाज, हजरत ख्वाजा सुलतान इब्राहीम अदम बलगी, हजरत ख्वाजा हूजे फतुली मरेखशी, ख्वाजा अनुमद्दीन अलबी, हजरत ख्वाजा ममशाद्दीन दीननूरी, हजरत ख्वाजा अबु इसहाक चिश्ती तक पहुंची।
इसके बाद यह हजरत ख्वाजा अबू अहमद चिश्ती, हजरत ख्वाजा अबू मोहम्मद चिश्ती, हजरत ख्वाजा नासीरउद्दीन अबू युसुफ चिश्ती, हजरत ख्वाजा खुदबुद्दीन मोंदुद चिश्ती, हजरत ख्वाजा हाजी शरीफेजींदनी,हजरत ख्वाजा उस्माने हारूनी, हजरत ख्वाजा मोइनउद्दीन चिश्ती के पास पहुंची। इनके पास से हजरत ख्वाजा खुदबोद्दीन बख्तियार-ए-काकी, हजरत ख्वाजा फरीदुद्दीन गंजेशंकर, हजरत ख्वाजा निजामुद्दीन औलिया, हजरत ख्वाजा बुहानुद्दीन औलिया से होकर खुल्दाबाद में 738 हिजरत को हजरत 22वें ख्वाजा सैयद जैनुद्दीन चिश्ती शिराजी के पास पहुंची।
खुल्दाबाद का इतिहास
खुल्दाबाद गांव का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है। यहां हनुमान जी का भ्द्रा मारुति मंदिर है, सूफी संत और औरंगजेब के राजघराने के सदस्य एवं सरदारों की कब्र हैं। 14वीं शताब्दी में इस गांव में सूफी संत रहा करते थे। इसे ‘रत्नापुर’ नाम से भी पहचाना जाता था। खुल्दाबाद की दरगाह को पैगंबर हजरत मोहम्मद की पवित्र पोशाक और बाल की वजह से विशेष महत्व प्राप्त हुआ है।












