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Home अतिथि लेख

सरकारी योजनाऐं छोटे कलाकारों तक आते-आते दम तोड़ देती है : अर्चना मिश्रा

in अतिथि लेख, बिहार
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अर्चना मिश्रा कोसी क्षेत्र के लिये एक जाना पहचाना चेहरा है । अपने कला के बूते काफी कम उम्र में इन्होने अपना कद काफी उंचा कर लिया है । इनकी मिथि‍ला पेंटिंग भारत ही नहीं अपितु जापान के आर्ट फेस्टिवल के में भी प्रदर्शि‍त हो चुकी है । साथ ही साथ काफी कम उम्र में इन्होने जिला स्तरीय, राज्यस्तरीय पेंटिंग प्रतियोगिता में भी अपना लोहा मनवाया है । हाल में ही आपने जेएनयू के एसएफडी द्वारा आयोजित आर्ट प्रतियोगिता में पुरे भारत में पहला स्थान प्राप्त किया है । अर्चना अपने क्षेत्र के बच्चों को न केवल मिथि‍ला पेंटिंग की शि‍क्षा देती है बल्कि आर्ट को बढ़ावा देने कई लिये कई तरह के नि:शुल्क वर्कशॉप भी करती है । मिथि‍ला पेंटिंग के भविष्य, वर्तमान और बाजार में इसके संभावनाओं पर हवाबाज मीडिया के लिये साक्षी झा ने उनसे बात की । प्रस्तुत है उनसे हुई बातचीत का कुछ खास अंश – टीम हवाबाज

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साक्षी – सबसे पहले अपने बारे में कुछ बताएं ?

अर्चना मिश्रा- जी बिल्कुल, मैं इस साल मैथ्स से मास्टर्स की हूं। और साथ ही साथ डिस्टेंस फाइन आर्ट से मास्टर्स भी कर रही हूँ । इसके साथ ही मैंने मिथिला पेंटिंग का डिप्लोमा कोर्स भी उपेन्द्र महारथी संस्थान से किया हुआ है। और अभी मेरी कैरियर एक आर्टिस्ट के रूप में है।

 

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साक्षी – कोरोना की वजह से हुए लॉकडाउन ने कलाकारों को सबसे ज्यादा प्रभावित किया है । जिनकी आजीविका का एकमात्र स्त्रोत कला है वो एकदम से बेरोजगार हो गए । सरकार की योजनाए गरीब मजदूरों तक तो पहुँच पायी लेकिन कलाकारों तक नहीं आ पाई । क्या  कहना है इसके बारे में ?

अर्चना मिश्रा- हां, यह तो बिल्कुल सही है, आर्टिस्ट सब आर्ट पर ही डिपेंडेंट है पूरी तरह से और अब सरकार की योजनओं को कलाकार तक ना पहुंचना एक बहुत ही बड़ी समस्या हो गई है। अभी आर्ट सप्लाई बन्द है, आर्टिस्ट सब बैठे है घर पर, कूरियर सेवाएं भी अभी बन्द है जिससे पेंटिग्‍स को भेजा जा सके, रही बात सरकार की तो सरकार कभी भी पूरी तरह से कलाकार को समर्थन देने के लिए कभी उस तरह से आगे नहीं आती जैसे वादे करती। आज कल आर्टिस्टों की भी अलग कम्युनिटी बन चुकी है, पहले आर्टिस्ट में सब आते थे चाहे वह फोक आर्ट वाले हो या फाइन आर्ट । पर अभी सब आर्ट की अलग कम्युनिटी बना दी गई है। सरकार फोक आर्ट वालों के लिए कई तरह की स्कीम लॉन्च की है। मेरे जानकारी के अनुसार फाइन आर्ट्स वालों के लिए कोई वैसी स्कीम नहीं आई है । सरकार जो-जो स्कीम लॉन्च करती फाइन आर्ट्स के आर्टिस्ट के लिए वह उभर के नहीं आ पाती, बीच में ही उसे रोक दिया जाता है। मेरा किसी भी स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी से कोई कनेक्शन नहीं है, हो सकता है सरकार के द्वारा यह सुविधाएं आर्ट कॉलेज में दी गई होगी, सबका अपना ग्रुप रहता,  उन ग्रुप तक इंफॉर्मेशन, अपडेट्स जाती है उसके आगे नहीं। ऐसे अपडेट्स बाहर वाले आर्टिस्ट के पास जाना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। आपको धीरे धीरे जगह बनानी पड़ती है।

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साक्षी – बिहार के सबसे पिछड़े इलाके से होने के बावजूद आपके मन में पेटिंग की रूची कैसे जगी । सहरसा जैसे क्षेत्र में इसका क्यां स्कोप है । ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी पेंटिंग का मतलब फ्री का काम होता है । ऐसे में एक कलाकार के रूप में आपकी क्या राय है ?

अर्चना मिश्रा–  मिथिला पेंटिंग हमारी लोक कला है तो उसे सीखनी की जरूरत नहीं पड़ी। वह हमेशा मैंने अपने घर में, नानी मां, दादी मां चाची सबको देखकर सीखा। मिथिला पेंटिंग में लोक कला के कारण लिमिटेशन होती है पर यहीं हम अगर दूसरे आर्ट की बात करे तो उसमे ज्यादा लिमिटेशन नहीं होती है। यह लोगों के सोच पर निर्भर करता है कि वह आर्ट को किस रूप में लेते, कोई भी काम आसान नहीं होता पर कुछ जगह पर लोग आर्ट कला को कम आंकते, वहीं कुछ लोग अपने कला के बल पर रातों रात एक मुकाम हासिल करना चाहते।

 

साक्षी – आपके आर्ट की सबसे बड़ी खासियत उसकी विविधता है, आप फाइन आर्ट और मिथि‍ला पेंटिंग दोनो को एक अलग तरीके से पेश करती है । क्या कारण है ?

अर्चना मिश्रा – फॉक आर्ट और मधुबनी पेंटिंग दोनों अलग है पर मैं उन दोनों आर्ट को एक बना कर पेश करती। मिथिला पेंटिंग में लोक कला के कारण लिमिटेशन होती है पर यहीं हम अगर दूसरे आर्ट की बात करे तो उसमे ज्यादा लिमिटेशन नहीं होती है। मधुबनी पेंटिंग एक थीम वाइज बनाया जाता जैसे किसी शुभ अवसर पर शादी ब्याह के थीम पर आधारित। मधुबनी पेंटिंग हमारे कल्चर को रिप्रेजेंट करता है। फाइन आर्ट्स में आप किसी भी चीज को अपने तरीके से उभार सकते। पर यह बात भी सच है कि मुझे मधुबनी पेंटिंग में ज्यादा मेहनत नहीं लगाना पड़ता बचपन से देखते आए है।

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साक्षी – सहरसा, मधेपुरा या कोशी के क्षेत्र में आर्ट एग्जीबि‍शन की क्या संभावना है । आप इसको किस नजरिये से देखती हैं ।

अर्चना मिश्रा – आर्ट एग्जीबिशन जहां तक मुझे याद है, बचपन से देखते आए है, बहुत ही कम स्तर पर लगता था पर अभी एक दो सालों से जो तरह तरह के फेस्टिवल ऑर्गनाइज किए जाते है उसके बाद से आर्ट एग्जीबिशन में बढ़ोतरी हुई है। अब लोग चाहने लगे है आर्ट को, अब लोग जाने लगे है एग्जीबिशन में खरीदने लगे है आर्ट्स को, कलाकारों ने भी अपनी कलाकृति को एग्‍जीबिशन में लगाना शुरू कर दिया है । थोड़ी थोड़ी संभावनाएं बनने लगी है, अभी भी एकदम से तुरंत सब चीज बदलेगा नहीं, पर रास्ते निकल रहे है।

 

साक्षी – आपने मैथि‍ली में लिखे भागवद् गीता का कवर पेज भी अपने पेंटिंग के माध्यम से बनाया है । इस क्षेत्र में क्या संभावना है?  क्या‍ ग्रामीण कलाकार बड़े पब्लिकेशन हाउस को अपनी और आकर्षि‍त कर पाएगी ।

अर्चना मिश्रा– हॉ कह सकते है, यहां पर यह सब आर्टिस्ट पर डिपेंड करता है कि उन्होंने खुदको कितना एक्सप्लोर किया है और करना चाहते है। हमने जब भागवत गीता का किया था तब दो आर्टिस्ट उसके अंदर के डिजाइन किए । हमें यह ऑर्डर सहरसा में रहकर ही मिला था।जो इसकी ऑर्डर दी थी , उन्होंने खुद से हमें कॉन्टैक्ट किया फिर उसके बाद उन्होंने बताया कि उनकी क्या क्या रिक्वायरमेंट है। यह आर्टिस्ट पर डिपेंड होता है कि वह अपने आर्ट को कितना ब्रांडिंग करता खुद से। सोशल मीडिया इसमें बहुत बड़ा योगदान दे रहा है। हमें ऑर्डर देने वाली महिला अमेरिका से थी, उन्होंने सोशल मीडिया के द्वारा ही हमें यह काम दिया।हम लोग जीतने आर्टिस्ट से सब अलग अलग थे, अलग अलग जगह से ,अलग अलग जगह पर। खुद को एक्सप्लोर करने के लिए कोई बड़ी जगह की जरूरत नहीं पड़ती, अगर आप गांव में हो तो वहीं से अपने कला को एक्सप्लोर करो।

साक्षी – कोसी क्षेत्र के लिये मिथि‍ला पेंटिंग और फाइन आर्ट के बच्चों  के लिये आपके पास क्या योजना है ?

अर्चना मिश्रा–  हां बिल्कुल। मैं अपना बता रही की जब मैं छोटी थी तब, मेरी पेंटिंग में सबसे ज्यादा रुचि थी पर मुझे प्रॉपर सिखाने और गाइड करने वाला कोई नहीं  था।उस समय कोई आर्ट टीचर नहीं मिलते थे,अभी चीजें थोड़ी बदली है थोड़ी क्या बहुत ही, आर्टिस्ट के नजर से में देखू और कहूं तो  मैं बहुत ही कुछ करना चाहती उन बच्चों के लिए जिन्हें अपनी कला को दिखाने के लिए रास्ते नहीं मिल पा रहे, मुझे खुशी मिलेगी अगर मैं उनकी मदद कर सकू। मैं ऑनलाइन क्लासेज कराने की सोच रही हूं। हमलोग का वहां एक इंस्टीट्यूट है, हमलोग जब भी वहां जाते है तो कोशिश रहती है कि हर बच्चे , सीखने वाले से मिले इंटरैक्ट करे,उन्हें कुछ दिक्कत हो तो उन्हें सॉल्व करे। वर्कशॉप जो हमने करवाए थे वह एक इवेंट के द्वारा थे,जो कि फ्री ऑफ कॉस्ट था। और जो इंस्टीट्यूट है,वह तो चार्जेज लेती है, मगर नॉर्मल 500रुपए पर बच्चे, अगर इसमें भी कुछ वैसा बच्चा जो ना देपाए या उस स्तिथि में नहीं हो कि वह 500हर महीने दे सके तो हम उन्हें छूट देते और बहुतों को मुफ्त में सिखाते।हमारा मतलब बच्चों को सिखाने से है बस, कि वह सीखे और कुछ अच्छा कर सके।

 

साक्षी – हवाबाज मीडिया से बात करने के लिये शुक्रि‍या, आने वाली पीढी जो इस क्षेत्र में काम करना चाहती है, उनके लिये कोई संदेश देना चाहती हैं ।

अर्चना मिश्रा – अगर कला आपके अंदर है और आप चाहते हो इस क्षेत्र में आना तो बेशक आप अपने मन कि सुनो और अपने आप को एक्सप्लोर करो।आर्ट को हमेशा  फॉलो करे क्युकी आर्ट इस ओल अबाउट एक्सप्रेशन।कहते है ना कि आप कितना भी पैसा कमा लो, सक्सेस हो जाओ पर आप अगर वह ना कर सको जो आपका मन कहता, मन करना चाहता था , तब आपको संतुष्टि नहीं मिल पाएगी। शौख रहेगा कुछ करने का तो बेशक आप उसके पीछे भागोगे,आप उसके लिए प्रेक्टिस करोगे बस अपने कला को फॉलो करे और यह बात भी है कि एक्स्ट्रा करिकुलार एक्टिविटीज भी  बहुत जरूरी है । हमारे परेंट्स को लगता कि पढ़ाई लिखाई ही सब कुछ है , बिना उसके आप कुछ नहीं। तो हमारे पैरेंट्स को भी समझना चाहिए कि बच्चे को आज के समय मै हर एक चीज में आगे रहना चाहिए। ताकि वह एक मुकाम हासिल कर सके और अपना सपना साकार कर सके।

 

साक्षी झा – अपने नवीनतम विचारों और पैनी नज़र से देश दुनियाँ की खबरों को अपने अंदाज में लिखती है । एमीटी कॉलेज पटना की मास मीडिया की छात्र है । एंकर बनना चाहती है और समाज के सबसे निचले स्‍तर की रिपोर्टि‍ग करना चाहती है । इनसे sakshijha310@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है ।

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