कोरोना । एक ऐसा वैश्विक रोग जिसका कोई इलाज नहीं है । अब तक लगभग 1500 जाने ले चुका है । 67 हजार से अधिक लोग इसके कारण संक्रमित हो चुके हैं । लोग इस वायरस को लेकर तरह तरह के सवाल उठा रहे हैं । चीन का दावा है कि इसके पीछे चमगादड़ का हाथ है लेकिन कई लोगों का मानना है कि कोरोना कहीं जैविक युद्ध कार्यक्रम का हिस्सा तो नहीं, जो गलती से प्रयोगशाला से बाहर निकल गया ।
अमेरिका के प्रतिष्ठित दैनिक ‘वाशिंगटन पोस्ट’ में इस आशय की रिपोर्ट छपी कि कोरोना वायरस चीन के जैविक युद्ध कार्यक्रम का एक हिस्सा था जो ग़लती से प्रयोगशाला से बाहर निकल कर खुले वातावरण में चला गया। लेकिन अमेरिका की ही दूसरी प्रतिष्ठित पत्रिका फ़ॉरेन पॉलिसी ने इन अटकलों को बकवास बताया है। चीन ने भी किसी घातक जैव शोध कार्यक्रम से इनकार किया है।
जैविक हथियारों के विकास और भंडारण को प्रतिबंधित करने वाली अंतरराष्ट्रीय संधि के पालन को लेकर यदि कोई अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था होती तो चीन के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों की जांच हो सकती थी लेकिन चीन, अमेरिका, रूस सहित सभी बड़ी ताक़तें जैविक हथियार संधि के पालन की जांच-व्यवस्था स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, इसलिये कई देश जैविक हथियारों के विकास और भंडारण में जुटे हैं। अब बड़ा डर यह पैदा हो गया है कि कहीं बड़ी ताक़तों की इस टालमटोल की नीति का लाभ ताक़तवर आतंकवादी संगठन नहीं उठा लें।
वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलोजी
हालांकि इस वायरस की संरचना और यह जल्दी में कैसे नई संरचना अपना लेता है, इसे लेकर अभी तक रहस्य बना हुआ है और इसे मारने के लिये टीके के विकास पर भी हांगकांग की एक प्रयोगशाला में काम चल रहा है लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि वुहान शहर में ही वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ़ वायरोलोजी है, जहां घातक विषाणुओं से लड़ने के लिये विषाणु वैज्ञानिक काम करते हैं।
यह संस्थान चीन की सेना के लिये जैव युद्ध कार्यक्रम में भी योगदान करता है। इस संस्थान के बारे में इजराइल के एक जैव-वैज्ञानिक और जैव युद्ध के विशेषज्ञ डैनी शोहम ने ‘वाशिंगटन पोस्ट’ को बताया कि यह संस्थान चीन की सबसे अत्याधुनिक जैव शोध प्रयोगशाला है। यह विषाणु शोध का चीन का एकमात्र शोध संस्थान है जिसकी मौजूदगी के बारे में चीन ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है।
इस संस्थान में जानलेवा वायरसों पर शोध काम होता है। डैनी शोहम इजराइल के सैन्य खुफिया अधिकारी हैं जिन्होंने चीन के जैव युद्ध कार्यक्रम के बारे में गहन शोध किया है। डैनी शोहम का कहना है कि यह संस्थान चीन के गोपनीय जैव-युद्ध कार्यक्रम से जुड़ा है। वुहान जैव संस्थान में नागरिक और सैन्य इरादों से विषाणुओं पर शोध कार्य होता है।
अमेरिकी सीनेटर टॉम कॉटन ने भी कहा है कि चीन ने वुहान के सीफूड मार्केट से कोरोना के फैलने की बात करके दुनिया को बरगलाने की कोशिश की है। हो सकता है यह वायरस वुहान की ही ‘सुपर लेबोरेटरी’ वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी से निकला हो। वहीं, रूस वायरस के लिए पश्चिमी देशों को जिम्मेदार ठहरा रहा है। रूस ने कहा है कि चीन में कोरोना फैलने के पीछे पश्चिमी देशों खासकर अमेरिका की साजिश है।
जेनेवा संधि का हो रहा पालन?
गौरतलब है कि जैव हथियारों के इस्तेमाल को प्रतिबंधित करने के लिये 1925 में ही जेनेवा में एक अंतरराष्ट्रीय संधि हुई थी। लेकिन इस संधि में जैव हथियारों के विकास और भंडारण को लेकर कोई संकल्प नहीं था। बाद में 1972 में इस संधि में नये प्रावधान जोड़ कर इसके विकास और भंडारण पर भी रोक लगाने का प्रस्ताव ब्रिटिश सरकार ने तैयार किया जिसे 26 मार्च, 1975 को लागू किया गया। अगस्त, 2019 तक इस संधि पर 183 देशों ने दस्तखत कर दिये थे। लेकिन इस संधि का पालन कितनी ईमानदारी से हो रहा है, इसकी जांच करने के लिये किसी अंतरराष्ट्रीय जांच व्यवस्था पर कोई सहमति नहीं होने से देशों के जैवयुद्ध कार्यक्रम पर रोक नहीं लगाई जा सकी है।
जैविक हथियार संधि के अनुच्छेद- 1 में कहा गया है कि संधि पर दस्तखत करने वाला हर देश यह संकल्प लेता है कि किसी भी हालत में वह जैव हथियारों का विकास, उत्पादन, भंडारण और इस्तेमाल नहीं करेगा।
जैविक हथियारों का इस्तेमाल आतंकवादी संगठनों द्वारा भी करने की शंकाओं के मद्देनजर अमेरिकी कांग्रेस ने 1989 में जैव-हथियार प्रति आतंकवादी क़ानून बनाया ताकि जैव हथियार आतंकवादियों के हाथ नहीं लगे और संधि का पालन सुनिश्चित किया जा सके।
इस संधि का पालन सुनिश्चित करने के लिये कोई अंतरराष्ट्रीय निगरानी व्यवस्था खड़ी करने के इरादे से संयुक्त राष्ट्र में नब्बे के दशक में कई बार चर्चा हुई और बड़ी ताक़तों ने सलाह-मशविरा किया। 1991 में इस संधि के पालन को लेकर जो समीक्षा बैठक हुई उसमें सरकारी विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाने का फैसला किया गया। इस कमेटी की बैठकें एक तदर्थ समिति के तत्वावधान में 1995 और 2001 में हुईं।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कोरोना को कृत्रिम रूप से तैयार किया गया है। इसके पीछे अमेरिकी खुफिया एजेंसी और फार्मास्यूटिकल कंपनियां है। रूसी मीडिया ने दावा किया कि अमेरिका ने जॉर्जिया में एक प्रयोगशाला बनायी है, जहां इंसान पर जैविक हथियारों का परीक्षण किया गया था। यह आशंका इसलिए भी है, क्योंकि चीन ने एक महीने तक इस बीमारी के फैलने की जानकारी सार्वजनिक नहीं की।
पिछले हफ्ते हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के केमिस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रमुख चार्ल्स लीवर को वुहान यूनिवर्सिटी की मदद करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। उनपर आरोप है कि उन्होंने चीन को जैविक हथियार विकसित करने में मदद की है।
कोरोना की सच्चाई बताने वाला पत्रकार गायब
सबसे पहले कोरोना की जानकारी देने वाले डॉक्टर ली वेनलियांग की मौत के बाद एक चीनी नागरिक पत्रकार चेन कुशी गायब हैं । कुशी के गायब होने का मामला संदेहास्पद हो गया है । चेन वुहान से कोरोना पर रिपोर्टिंग कर रहा था ।
बहुत पुराना इतिहास है जैविक हथियारों का
1925 में जैविक हथियारों को लेकर जेनेवा में एक संधि हुई थी जिसमें इसके इस्तेमाल को लेकर प्रतिबंध की बात हुई लेकिन भंडारण पर कोई रोक नहीं लगायी गयी।
1932 में जापान ने चीन पर हवाई जहाज से कुछ कीटाणुओं से संक्रमित गेहूं के दानों का छिड़काव किया था। उसके बाद वहां फैले प्लेग ने करीब तीन हजार चीनियों की जान ले ली थी।
1972 में भंडारण पर प्रतिबंध का नया नियम जोड़ा गया जो 1975 में लागू हुआ। इस संधि में 180 से ज्यादा देश शामिल भी हैं लेकिन किसके पास जैविक हथियार हैं या नहीं हैं या कौन विकसित कर रहा है आदि की जांच की कोई व्यवस्था नहीं है।
2016 में अंतरराष्ट्रीय खुफिया संगठनों ने आशंका जतायी थी कि खूंखार आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट जैविक हथियारों तक पहुंच बनाने में लगा हुआ है। उस वक्त अमेरिकी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी जेम्स स्टॅवरिडिस ने चेतावनी दी थी कि इबोला और जीका जैसे रोगों के वायरस यदि आतंकियों के हाथ लग गये तो कोहराम मच जायेगा। 40 करोड़ से ज्यादा लोग मारे जायेंगे।
2017 में अफगानिस्तान में जब कुछ इलाकों में बड़ी संख्या में लोगों के शरीर पर फफोले होने लगे थे तब रासायनिक हमले की बात उठी थी।
2017 में अफगानिस्तान की घटना का जिक्र करते हुए पूर्व रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा था कि पाकिस्तान ने अफगानिस्तान के सीमाई इलाके में रासायनिक हथियारों का इस्तेमाल किया है। उन्होंने देश को तैयार रहने को कहा था।
अब तक हो चुकी है 1523 लोगों की मौत
प्रत्येक सरकार के स्वास्थ्य अधिकारियों के ताजा आंकड़ों के मुताबिक शनिवार तक चीन में 1,523 लोगों की मौत हुई और 66,492 मामलों में संक्रमण की पुष्टि हुई है। इसके अलावा हांगकांग में एक व्यक्ति की मौत समेत 56 मामले सामने आए हैं। मकाउ में 10 मामलों की पुष्टि हुई है। भारत में भी तीन मामलों की पुष्टि हो चुकी है ।
क्या है ईलाज
हालांकि कोरोना का कोई वैश्विक इलाज अभी तक नहीं बन पाया है । एंटी बायोटिक भी इस बिमारी में काम नहीं कर रहा है । ऐसे में बचाव को ही इलाज माना जा रहा है । चुकी यह एक संक्रमण रोग है इसलिये इस केस में मरीज से दूर रहने की सलाह दी जाती है । सीफूड के इस्तेमाल पर मनाही कर दी गई है । तथा मास्क लगाने को कहा गया है । सोशल मीडिया पर कई तरह की बाते हो रही हैं, जैसे डब्बा बंद खाना और पेय पदार्थ नहीं लेना है । बॉयलर चिकन नहीं लेना है आदि । फिलहाल इस रोग से बचने का एकमात्र उपाय सावधानी ही है ।