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चार हजार साल पुराना है ‘प्याज’ से इंसानों का ‘प्यार’

in भारत
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प्याज को तोहफे के तौर पर देना का इतिहास रहा है। यूरोप में मध्यकाल में प्याज उपहार में दिया जाता था। प्याज से उस दौर में किराया भी चुकाया जाता था । ईसा बाद पहली शताब्दी में योद्धा प्याज का रस अपने शरीर पर मलते थे, ताकि मांसपेशियां मजबूत हो सकें। प्याज अगर सब्जी में डालकर बनाई जाए तो खाने का स्वाद बढ़ा देती है, इसका दाम बढ़ जाए तो किचन का बजट बिगाड़ देती है, और अगर यह सियासी मुद्दा बन जाए तो सरकारें तक गिरा देती है। सत्ता का सुख भोग चुकीं सरकारें प्याज के इतिहास से बखूबी वाकिफ हैं। कम से कम उस इतिहास से तो जरूर, जिनसे उनका सत्ता का सुख भोगते समय पाला पड़ा । इस समय देश में प्याज के दाम आसमान पर है। यह आलम तब है जब भारत विश्‍व में प्‍याज का उत्‍पादन करने वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है। आइये जाने क्‍या प्‍याज है इतिहास और क्‍या क्‍या किया इस मुए प्‍याज ने…

 दुनिया का सबसे प्रमुख वैश्विक खाद्य पदार्थ, सबसे ज़्यादा बहुसांस्कृतिक भी है.

प्याज का सदियों पुराना इतिहास रहा है। इंसान का प्याज से प्यार का रिश्ता 4 हजार साल पुराना है । आज से 4 हजार साल पहले भी प्‍याज का इस्‍तेमाल विभिन्न व्यंजनों में किया जाता था। यह बात तब पता चली जब मेसोपोटामिया काल का एक लेख सामने आया । येल विश्वविद्यालय के बेबिलोनिया संग्रह में मिट्टी की पट्टी पर अंकित तीन लेख एक ख़ास बात के लिए विख्यात हैं । उन्हें पाककला पर दुनिया की सबसे पुरानी किताब माना जाता है ।

 

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जातिदुष्‍ट भोजन के अंतर्गत लहसुन एवं प्‍याज का भक्षण प्राचीन काल में करते थे । – गृहस्‍थरत्‍नाकर

 

इन पर लिखी इबारत का भेद उनके लिखे जाने के क़रीब 4000 साल बाद 1985 में खुला । मेसोपोटामिया की सभ्यता, इतिहास और पुरातत्व के विशेषज्ञ और भोजन पकाने के शौकीन ज्यां बोटेरो को कुछ लोग इनका अर्थ समझाने का श्रेय देते हैं । उन्होंने बताया कि इस पट्टी पर बहुत ही परिष्कृत और कलात्मक व्यंजनों को पकाने की विधि लिखी है. एक ख़ास चीज़ का स्वाद उन लोगों को कुछ ज़्यादा ही भाता था ।

बोटेरो कहते हैं,

 “प्याज और सब्जियां उन लोगों को बेहद पसंद थीं।”

कहाँ से आया प्याज?

खाद्य पदार्थों की इतिहासकार और ‘द सिल्क रोड गुर्मे’ की लेखिका लॉरा केली कहती हैं, “जेनेटिक विश्लेषण के आधार पर हम मानते हैं कि प्याज मध्य एशिया से आया. ऐसे में मेसोपोटामिया में इसका प्रयोग बताता है कि उस समय तक ही यह काफ़ी सफ़र कर चुका था. हमें इस बात के सबूत मिले हैं कि यूरोप में कांस्य युग में प्याज का प्रयोग होता था.”

केली कहती हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं कि 2000 साल पहले सिल्क रूट से प्याज का कारोबार होता था. उस वक़्त तक मेसोपोटामिया के लोग अपने प्याज वाले व्यंजनों का इतिहास लिख रहे थे.

मेसोपोटामिया निवासियों के व्यंजन का ज़ायका चखने के लिए केली ने उन्हीं की विधि से कुछ पकवान बनाकर भी देखे.

क्‍या है खपत

आजकल प्याज का अंतरराष्ट्रीय कारोबार बहुत ज़्यादा नहीं होता. क़रीब 90 प्रतिशत प्याज उसे पैदा करने वाले देश में खप जाता है. शायद यही वजह है कि दुनिया के ज़्यादातर हिस्से में प्याज पर बहुत ध्यान नहीं जाता.

चीन और भारत मिलकर दुनिया के कुल उत्पादन (सात करोड़ टन) का क़रीब 45 प्रतिशत हिस्सा पैदा करते हैं.

मगर प्रति व्यक्ति प्याज की खपत के लिहाज से दुनिया में सबसे अधिक प्याज लीबिया में खाई जाती है.

साल 2011 के संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के मुताबिक़ लीबिया में हर व्यक्ति औसतन 33.6 किलो प्याज सालाना उपयोग करता है.

1998 में दिल्‍ली में विधानसभा चुनाव भाजपा इसलिये हार गई क्‍योंकि उस समय प्‍याज की किमतें उंची थी ।

प्याज को सदियों से लगभग सभी धर्मों के लोग बड़े ही चाव से खाते आ रहे हैं। देश में फिलहाल प्याज आसमान पर है। ऐसे में ‘जमीन’ पर रह रहे लोगों के लिए आज के दिन इसे हासिल करना किसी बड़ी कामयाबी से कम नहीं। प्याज जिन लोगों की पहुंच में है आज वो लोग मजाहिया अंदाज में प्याज को तोहफे के तौर पर अपनों को देने की बात कर रहे हैं। लोग भले ही मजाहिया अंदाज में यह बात कह रहे हों, लेकिन प्याज को तोहफे के तौर पर देना का भी एक लंबा इतिहास रहा है। यूरोप में मध्यकाल में प्याज उपहार में दिया जाता था, इतना ही नहीं बल्कि प्याज से उस दौर में किराया भी चुकाया जाता था। ईसा बाद पहली शताब्दी में योद्धा प्याज का रस अपने शरीर पर मलते थे, ताकि उनकी मांसपेशियां मजबूत हो सकें। यही नहीं बल्कि उस दौर में एथलीट ओलिंपिक खेलों की तैयारी में प्याज का इस्तेमाल करते थे।

कल तक देश का गरीब तबका यह कहता था की वो रोटी, नमक और प्याज से अपनी भूख मिटा लेता है। लेकिन आज वो सिर्फ रोटी के साथ नमक खाकर प्याज के आंसू रोने को मजबूर है। आसमान छू रहा प्याज गरीबों की पहुंच से दूर है, और नमक गरीबों के रगों में घुलकर ब्लड प्रेशर बढ़ा रहा है। देश की जनता को प्याज के आंसू रुलाने वाली सरकारें कई बार प्याज के दाम आसमान छूने पर पसर चुकी हैं। बावजूद इसके आज देश की मोदी सरकार कुछ फौरी कदम उठाकर चैन की नींद सो रही है और महंगाई का आलम ये है की प्याज के दाम में 200 से 300 फीसदी का उछाल है।

श्री कुबेर नाथ राय ने लिखा है कि ‘प्याज की भारतीयता का पिता है अनार्य”, पितामह है द्रविड़ और प्रपितामह है निषाद ।”

दिल्ली में 2015 के बाद का यह पहला मौका है जब प्याज के दाम सबसे ऊंचे स्तर पर है। एशिया की सबसे बड़ी प्याज मंडी लासलगांव (महाराष्ट्र) में भी प्याज 8 रुपए किलो बिक रहा है। नाशिक में यही भाव चल रहा है। इस भाव से आप अंदाज लगा सकते हैं कि देश के दूसरे हिस्सों में क्या हाल होगा। लगगभग हर साल सितंबर, अक्टूबर और नवंबर के महीने में प्याज के दाम में उछाल देखने को मिलता है। बिचौलियों पर लगाम कसने और आधुनिक स्टोरेज बानने की बात कहकर बीजेपी सरकार जनता से वाहवाही लूटती रही है, लेकिन धरातल पर कोई कदम नहीं उठाए गए। देश में प्याज की जरूरत साल भर लगभग स्थिर रहती है। ताजा प्याज की उपलब्धता 7 या 8 महीने तक सीमित होती है और एक वक्त ऐसा आता है, जब कीमतें अचानक बढ़ जाती है। जानकारों की मानें तो ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि प्याज का स्टोरज खराब तरीके से होता है।

प्याज का निर्यात करने वाले दुनिया भर के देशों में भारत कहीं आगे है। बंगलादेश, मलेशिया, श्रीलंका, यूएई, पाकिस्‍तान और नेपाल में भारत प्याज का निर्यात करता है। भारत और चीन दुनिया में कुल प्याज उत्पादन का 45 फीसदी प्याज उपजाते हैं, लेकिन खाने के मामले में यह दोनों दुनिया के शीर्ष देशों में शुमार नहीं हैं। देश के किसान 1 रुपये किलो प्याज बेचने को मजबूर हो जाते हैं। इन्हीं किसानों को उनका हक दिलाने की बात करने वाली मोदी सरकार ‘56 इंच’ का सीना दिखाकर निर्यात के आंकड़े पेश करती है। न तो किसानों की तस्वीर बदलती है और न जनता की तकदीर जो हर साल सितंबर से लेकर नवंबर तक प्याज के आंसू रोनो को मजबूर हो जाते हैं। कई सालों से भारत में प्याज से जुड़ा यह भी एक शर्मनाक इतिहास है, जिसे बदले जाने का देश की जनता को इंतजार है।

व्रत में इसलिये नहीं खाते हैं प्‍याज लहसून

व्रत के दौरान प्याज और लहसुन खाने से इंसान की कामुक ऊर्जा जागृत होने लगती है। ये पेट में गर्मी पैदा करता है और डाइजेशन सिस्टम के लिए ठीक नहीं होता। इसके साथ ही दोनों को व्रत के दौरान खाने से व्यक्ति अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण खो देता है। जो उपासना के मार्ग से भटका सकता है।

इसके पीछे एक पोराणिक कथा भी है। कहा जाता है कि समुंद्र मंथन से निकले अमृत को मोहिनी रूप धारण करे हुए भगवान विष्णु जब देवताओं में बांट रहे थे तभी दो राक्षस राहु और केतू ने धोखे से अमृत का सेवन कर लिया था। भगवान विष्णु को जैसे ही यह मालूम हुआ तो उन्होंने क्रोध में असुर का सर धड़ से अलग कर दिया।

राहु केतू तभी जमीन पर गिरकर नष्ट हो गए लेकिन दोनों के मुख में अमृत पहुंच चुका था इसलिए दोनों के मुख अमर हो गए। इतना ही नहीं उनके सिरों में से अमृत की कुछ बूंदें जमीन पर गिर गईं जिनसे प्याज और लहसुन उपजे।

प्याज और लहसुन दोनों ही अमृत की बूंदों से उपजे हैं। इसलिए यह रोगों को नष्ट करने में फायदेमंद होते हैं। इनमें मिला अमृत राक्षसों के मुख से होकर गिरा हैं, इसलिए इनमें तेज गंध है। यही वजह है कि इन्हें अपवित्र माना जाता है और देवी देवताओं के भोग में इस्तेमाल नहीं किया जाता।

माना जाता है कि जो लोग प्याज और लहसुन का सेवन करते हैं उनका शरीर राक्षसों की तरह मजबूत तो हो जाता है, लेकिन उनकी बुद्धि और सोच विचार भी राक्षसों की तरह दूषित हो जाती है।

प्याज के चक्कर में गिर चुकी हैं 2 सरकारें

साल 1998 में प्याज (Onion) के दाम आसमान छू रहे थे. केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार इसे काबू नहीं कर पाने में नाकाम रही. प्याज (Onion) के भाव बढ़ रहे थे और आम आदमी के आंखों से आंसू निकल रहे थे. इसी बीच दिल्ली में विधानसभा चुनाव हुए. तत्कालीन सुषमा स्वराज की सरकार ने जगह-जगह स्टॉल लगाकर सस्ते प्याज (Onion) (Onion) बेचा पर जनता के आंसू गुस्से में तब्दिल हो गया और शीला दीक्षित की अगुवाई में कांग्रेस सत्ता में आ गई. 15 साल बाद यही इतिहास दोबारा दोहराया.

ठीक यह हाल शीला दीक्षित के साथ भी हुआ. साल 2013 में प्याज (Onion) (Onion) के दाम में फिर से बेतहाशा बढ़ोत्तरी हुई, जिसके चलते शीला दीक्षित की सरकार चुनाव में बुरी तरह हारी. अक्तूबर 2013 को प्याज (Onion) की बढ़ी कीमतों पर सुषमा स्वराज की टिप्पणी थी कि यहीं से शीला सरकार का पतन शुरू होगा.

प्‍याज ने इंदिरा गांधी की सरकार लौटा दी

आपातकाल के बाद जनता पार्टी की गठबंधन सरकार सत्ता में थी. दूसरी तरफ़ इंदिरा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस वापसी का रास्ता बना रही थी. इसी बीच प्याज़ के दामों में इज़ाफ़ा हो गया. इंदिरा गांधी ने इसे मुद्दा बनाया. अपने भाषणों में इसे जगह दी. परिणाम ये हुआ कि गैर-कांग्रेसी सरकार गिर गई और इंदिरा गांधी की सत्ता में वापसी हुई. चूंकि, प्याज़ इस चुनाव का केंद्र रहा, इसलिए ये चुनाव पहला ‘प्याज़ चुनाव’ कहा गया.

प्याज खा के आशा पारेख से मिलने जाते थे धर्मेंद्र

किस्सा फिल्म “आये दिन बहार के” के शूटिंग के समय का है। फिल्मन की शूटिंग दार्जीलिंग में हो रही थी। अक्सर शूट ख़तम होते क्रू मेंबर देर रात तक पार्टी करते थे। धरम भी उस पार्टी का हिस्सा होते थे। रात को शराब का दौर चलता और धर्मेंद्र भी खूब पीते थे। जिसका असर ये होता कि सुबह शूटिंग के दौरान भी उनके मुंह से शराब की बदबू आती थी। आशा पारेख को शराब से सख्त नफ़रत थी। तो धर्मेंद्र उनसे बचने के लिए प्याज खा कर शूटिंग पर जाय करते थे। बाद में आशा पारेख ने धर्मेंद्र से शिकायत की कि उन्हें प्याज की बदबू भी पसंद नहीं है। तो अंत में धर्मेंद्र को प्याज खा कर आने की वजह बतानी पड़ गयी। आशा जी ने धर्मेंद्र से कहा की वो शराब छोड़ दें। फिर धीरे धीरे धर्मेंद्र और आशा पारेख बहुत अच्छे दोस्त भी बन गए।

कुछ बातें जो आप नहीं जानते

प्याज को दूसरों शब्दों में हम एक जमीनी कली भी कह सकते हैं। इसकी ऊपरी हरी और नीचे की सफेद गुलाबी-मांसल दोनों प्रकार की पत्तियां बड़े चाव से खाई जाती हैं। आलू के बाद सबसे ज्यादा खाई जाने वाली सब्जी है प्याज।

ऐसा माना जाता है कि प्याज की उत्पत्ति ईरान, पश्चिमी पाकिस्तान और उत्तर के पहाड़ी क्षेत्रों में हुई है। प्याज की प्राचीनता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पिरामिड निर्माता भी प्याज खाते थे। प्याज प्राचीन मिस्र में प्रिय भोजन सामग्री था। वहां के मकबरों पर इसे उकेरा गया है। यही नहीं ममियों के साथ भी प्याज मिले हैं। प्याज का जिक्र बाइबल और कुरान में भी आया है। कहने का आशय यह है कि प्याज का जिक्र हिप्पोक्रेटस से आज तक होता आया है।

प्याज में केलिसिन और रायबोफ्लेविन (विटामिन बी) पर्याप्त मात्रा में होता है। इसमें 11 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट होता है और इसकी गंध एन-प्रोपाइल-डाय सल्फाइड के कारण आती है। यह पदार्थ पानी में घुलनशील अमीनों अम्लों पर एन्जाइम की क्रिया के कारण बनता है। यही कारण है कि प्याज को काटने पर ही आंसू आते हैं।

हम प्याज का सलाद एवं सब्जी के रूप में तो उपयोग करते ही हैं, यह एक बेहतरीन औषधि भी है। प्याज अजीर्ण और पतले दस्त में लाभकारी है। यह जीवाणुरोधी, तनावरोधी व दर्द निवारक, कम सारक, मधुमेह नियंत्रक, प्रदाह निवारक, पथरी हटाने वाला और गठियारोधी भी है।

कहा तो यह भी गया है कि त्वचा पर घिसने से यह बालों में वृद्धि करता है। लू-लपट में घर से निकलने के पूर्व जेब में प्याज रखकर निकलने की हिदायत तो बुजुर्ग देते ही रहते हैं।

खाने के अलावा माँ प्याज का इस्तेमाल लू उतारने के लिए भी करती है। इसका इस्तेमाल लडकियां अपने बालों को बढ़ाने के लिए भी करती है साथ ही बालों से रुसी निकालने में भी इसका प्रयोग होता है। लेकिन अभी बात की जाए पहले के समय की तो पहले प्याज का इस्तेमाल इन सभी के अलावा और भी कामो में किया जाता था। जी दरअसल में पहले महिलाएं प्याज का इस्तेमाल पूजा करने और अंतिमसंस्कार करने के लिए करती थी, जो एक चौंका देने वाला खुलासा है।

सिर्फ यहीं नहीं इसी के साथ डॉक्टर्स भी पहले के समय में प्याज का इस्तेमाल कर उन महिलाओं के ऑपरेशन करते थे जो माँ नहीं बन पाती थी। इस बात के प्रमाण बहुत सी छानबीन करने पर मिले है। यहाँ करीबन पांच हज़ार साल पहले की हुई खुदाई में इस बात के अवशेष मिले थे और साथ ही मिस्त्र में भी तीन हज़ार साल पहले ही प्याज की खेती की बात सामने आई थी। यह बहुत ही अजीब और अनजाना किस्सा सामने आया है इसी के साथ मिस्त्र के राजा की माँ के मरने के बाद उन्हें जिस बक्से में बंद किया था वहां से भी प्याज के अवशेष बरामद किए गए थे।

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